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शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2019

Sharad Purnima ko hoti hai Amrit ki Varsha

शरद पूर्णिमा की रात को
आसमान से होती है अमृत की वर्षा
शरद पूर्णिमा - Sharad Purnima  - कोजागरी पूर्णिमा - Kojagari Purnima 

अश्विन मास में शुक्‍ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा, शरद ऋतु के आरंभ का परिचायक है। इस दिन चंद्रमा, पृथ्वी के सबसे करीब होता है। इस दिन चंद्रमा, माता लक्ष्‍मी और भगवान श्रीहरि की पूजा का विधान है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्‍मी का जन्‍म हुआ। जो लोग इस दिन व्रत रखते है उन्हें मां लक्ष्मी धन और सम्पति प्रदान करती हैं। शरद पूर्णिमा का चांद मानसून के पूरी तरह चले जाने का प्रतीक है। इस दिन चंद्रमा के प्रकाश में औषधीय गुण रहते हैं, जिनमें कई असाध्‍य रोगों को दूर करने की शक्ति होती है। शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर उसे आकाश के नीचे रखा जाता है। मान्‍यता है कि रात के समय आसमान से अमृत की वर्षा होती है।

शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्‍ण ने इस रात हर गोपी के लिए एक कृष्‍ण बनाया। पूरी रात श्रीकृष्‍ण, गोपियों के साथ नृत्य करते रहे, जिसे महारास कहा जाता है। शरद पूर्णिमा का व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा 16 कलाओं से युक्‍त होकर धरती पर अमृत वर्षा करता है। इस दिन व्रत करने से विवाहित स्त्रियों को संतान की प्राप्‍ति होती है। बच्‍चे दीर्घायु होते हैं। इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन करें। शाम के समय घर में दीपक जलाएं। जब रात्रि का एक पहर बीत जाए तो खीर का भोग मां लक्ष्मी को अर्पित करें। इस रात्रि में चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना बहुत शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इस रात मां लक्ष्‍मी आकाश में विचरण करती हैं और जो भी व्‍यक्ति जागृत अवस्था में मिलता है, मां लक्ष्‍मी उन्‍हें आशीर्वाद देती हैं।

कोजागरी पूर्णिमा व्रत

आश्विन मास की पूर्णिमा को कोजागरी व्रत रखा जाता है। इस दिन विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। यह व्रत लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने वाला माना जाता है।
नारद पुराण के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को प्रातः स्नान कर उपवास रखना चाहिए। इस दिन पीतल, चांदी, तांबे या सोने से बनी लक्ष्मी प्रतिमा को कपड़े से ढंककर विभिन्न विधियों द्वारा देवी पूजा करनी चाहिए। इसके पश्चात रात्रि को चंद्र उदय होने पर घी के 100 दीपक जलाने चाहिए। दूध से बनी हुई खीर को बर्तन में रखकर चांदनी रात में रख देना चाहिए।
कुछ समय बाद चांद की रोशनी में रखी हुई खीर का देवी लक्ष्मी को भोग लगाकर उसमें से ही ब्राह्मणों को प्रसादस्वरूप दान देना चाहिए। अगले दिन माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए और व्रत का पारणा करना चाहिए।

कोजागरी व्रत कथा :

इस दिन रात के समय जागरण या पूजा करना चाहिए, क्योंकि कोजागर या कोजागरी व्रत में एक प्रचलित कथा है कि इस दिन माता लक्ष्मी रात के समय भ्रमण कर यह देखती हैं कि कौन जाग रहा है। जो जागता है उसके घर में मां अवश्य आती हैं।

कोजागरी व्रत फल : ऐसा माना जाता है कि पूर्णिमा को किए जाने वाला कोजागरी व्रत लक्ष्मीजी को अतिप्रिय हैं इसलिए इस व्रत का श्रद्धापूर्ण पालन करने से लक्ष्मीजी अति प्रसन्न हो जाती हैं और धन व समृद्धि का आशीष देती हैं। इसके अलावा इस व्रत की महिमा से मृत्यु के पश्चात व्रती सिद्धत्व को प्राप्त होता है।

रोगियों के लिए वरदान हैं शरद पूर्णिमा की रात 
रासलीला - Rasleela शरद पूर्णिमा, Sharad Purnima,

एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है।
लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।

अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।

शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है।

वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और औ‍षधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है।

Sharad Purnima ki Rat

शरद पूर्णिमा की रात ये उपाय करने से घर आएगी सुख-शांति
Sharad Purnima

इस वर्ष शरद पूर्णिमा के दिन शुभ संजोग बन रहे हैं। ये शुभ योग चंद्रमा और मंगल ग्रहण के एक दम आमने-सामने होने की वजह से बन रहा है। शास्त्रों के अनुसार इसे महा-लक्ष्मी का योग कहा जाता है। इस शुभ योग के बनने से इस वर्ष शरद पूर्णिमा और भी खास कहलाई जाएगी।

इस वर्ष शरद पूर्णिमा के मौके पर महालक्ष्मी योग के दौरान देवी की पूजा करने का सौभाग्य पूरे 30 साल बाद मिल रहा है। जिस वजह से इस वर्ष स्वास्थय और आर्थिक सुधार मिलने के कई आसार दिखाई पड़ रहे हैं। चलिए आपको बताते हैं इस शरद पूर्णिमा के दिन आपके लिए कौन-कौन से काम शुभ रहेंगे।

महत्वपूर्ण काम करने का दिन

शास्त्रों के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन महालक्ष्मी योग बनने के कारण इस दिन खरीदारी और नए काम शुरू करना शुभ रहेगा। शुभ संयोग में प्रॉपर्टी और पैसे से संबंधित लेन-देन का काम करने से धन लाभ होने की संभावना और बढ़ जाएगी। जॉब और बिजनेस करने वाले लोगों के लिए पूरा दिन फायदेमंद रहेगा।

शरद पूर्णिमा का महत्व

शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा से निकलने वाली किरणें आपकी सेहत और भाग्य दोनों के लिए बहुत फायदेमंद होती हैं। ऐसे में जरुरी है इस दिन कुछ देर के लिए चांद की चांदनी में जरुर बैठा जाए। इससे आपके तन और मन को शांति का एहसास होगा।
लंबे समय से बीमार चल रहे व्यक्ति अगर इस रात चांद की चांदनी में बैठकर दवा का सेवन करते हैं, तो उन्हें बहुत ज्यादा लाभ मिलता है। यदि आप रात पहले खीर बनाकर चांद की रोशनी में रख देते हैं और सुबह उठकर उस खीर का सेवन करते हैं तो आपको जीवन में शारीरिक रोगों का सामना नहीं करना पड़ता।
- शरद पूर्णिमा की रात घर के बाहर दीपक जलाने से घर में सुख-शांति और खुशियों का वास होता है।
- शरद पूर्णिमा की चांद को खुली आंखों से देखना चाहिए इससे आंखों को ठंडक महसूस होती है साथ ही आंखों की कमजोर होती रोशनी में भी फायदा मिलता है।
तो ये थी शरद पूर्णिमा से जुड़ी कुछ खास बातें। जो आप और आपके परिवार दोनों के लिए ही फायदेमंद है।

मेहंदी के रंग को गहरा करने के लिए अपनाएं ये 5 तरीकें

करवाचौथ पर मेंहंदी शगुन की निशानी मानी जाती है। माना जाता है कि मेहंदी जितनी गहरी रचती है आपके पति आपके उतना ही प्यार करते है इसलिए हर महिला चाहती है कि उसके हाथों में खूब गहरी मेहंदी चढ़े। कई बार हाथों में मेहंदी गहरी नही चढ़ती है ऐसे में हम आपको कुछ ऐसे टिप्स बताएंगे जिनकी मदद से आप इस करवाचौथ पर अपनी मेहंदी का रंग गाढ़ा रचा सकती हैं।www.rajamis@gmail.com
  1. हाथों में लगी मेहंदी सूखने के बाद उस पर अचार का तेल लगाएं।
  2. 4 से 5 लौंग की कलियों को तवे पर गर्म करें,जब उसमें से धुआं निकलने लगे तो हाथों को ऊपर कर धुएं का सेंक दें। इससे धीरे- धीरे आपकी मेहंदी का रंग भी गहरा हो जाएगा।
  3. अगर मेहंदी पर गलती से पानी पड़ जाए तो पेट्रोलियम जैली उस पर लगा लें।
  4. मेहंदी को से 10 से 12 घंटे तक लगाने के बाद हटा दें। इसके बाद इस पर जुकाम व सर्दी के समय इस्तेमाल करने वाली विक्स को लगा कर रख दें। इससे हाथों में मेहंदी का रंग बहुत ही अच्छे से चढ़ेगा।
  5. मेहंदी लगाने के बाद उस पर नींबू व चीनी को मिक्स कर घोल लगा कर सूखने के लिए छोड़ दें।

रविवार, 6 अक्टूबर 2019

Vastu defects can also be avoided without sabotage !!

बिना तोड़-फोड़ किए भी बचा जा
सकता हैं वास्तुदोषों से !!


अधिकतर लोग वास्तु दोष के जाने बिना अपने घर का ऐसा निर्माण करवा लेते हैं, जो वास्तु की नजह से गलत माना जाता है। ऐसे में वास्तु शास्त्र से अनजान लोगों को वास्तु दोषों की वजह से परेशानियों का सामान करना पड़ता है। घर में बिना तोड़-फोड़ किए भी वास्तुदोष की वजह से घर में बढ़ रही हानिकारक शक्ति से बचा जा सकता है। वास्तु के इन छोटे-छोटे उपायों को अपनाने से घर में वास्तु दोषों का प्रभाव बहुत हद तक कम हो जाता है।और वास्तुदोष की वजह से होने वाले बुरे प्रभाव से बच सकते हैं।

Rajesh Mishra, Bheldi, Saran, Bihar


1- आप और आप का परिवार जब घर में पानी पीते समय ध्यान रखें की मुंह हमेशा उत्तर-पूर्व दिशा की ओर ही हो, ऐसा करने से वास्तुदोष की वजह से होने वाली बीमारियों से बच सकते हैं।
2- आप और आप का परिवार जब घर में खाना खाते है खाना खाते समय थाली पूर्व-दक्षिण दिशा की ओर रखें और अपना मुंह पूर्व दिशा की ओर रख कर खाना खाएं।
3- आप और आप का परिवार सोते समय सिर दक्षिण-पश्चिम या दक्षिण दिशा की ओर रखें, ऐसा करने से गहरी नींद आएगी और बुरे या डरावने विचार मन में नहीं आएंगे।
4- आप अपने घर में पूजन कक्ष ईशान कोण यानी पूर्व और उत्तर दिशा के बीच बनाएं और हनुमानजी की मूर्ति को दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थापित करें। इससे घर में सुख-शांति बढ़ेगी।
5- आप धन-संपत्ति पाने के लिए घर के मुख्य द्वार पर लक्ष्मी, गणेश, कुबेर स्वास्तिक, ऊँ आदि मांगलिक चिह्न बनाना या चित्र लगाना अच्छा माना जाता है।
6- आप अपने घर में पानी के नल की बोरिंग उत्तर-पूर्व दिशा में ही करवानी चाहिए। इसके अलावा किसी भी दिशा में बोरिंग करवाना वास्तु की नजर में लाभकारी नहीं माना जाता।
7- आप घर के किसी भी सदस्य के खाना खाने से पहले, खाने का थोड़ा सा भाग रोज गाय को खिलाना चाहिए। ऐसा करने से मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
8. आप घर के बारह आंगन में हरे-भरे पेड़-पौधे लगाएं,काटेदार न हो इनसे घर में अच्छी शक्ति फैलती है। घर में सजाएं गए फूलों को रोज बदलें, सूखे या बासी फूल भी वास्तुदोष का कारण बन सकते हैं।
9. आप धन में वृद्धि और बचत के लिए तिजोरी को दक्षिण दिशा में इस तरह रखें की इसका मुंह उत्तर दिशा की ओर रहे।
10. आप वास्तु दोष को कम करने के लिए और मानसिक तनाव से बचने के लिए घर में चंदन से बनी अगरबत्ती जलाएं। इससे तनाव कम होता है और शांति मिलती है।

64 Yogini Names and Mantra!!

चौसठ योगिनियों के नाम और मंत्र !!

Maa Durga

आदिशक्ति का सीधा सा सम्बन्ध है इस शब्द का जिसमे प्रकृति या ऐसी शक्ति का बोध होता जो उत्पन्न करने और पालन करने का दायित्व निभाती है जिसने भी इस शक्ति की शरण में खुद को समर्पित कर दिया उसे फिर किसी प्रकार कि चिंता करने कि कोई आवश्यकता नहीं वह परमानन्द हो जाता है चौंसठ योगिनियां वस्तुतः माता आदिशक्ति कि सहायक शक्तियों के रूप में मानी जाती हैं जिनकी मदद से माता आदिशक्ति इस संसार का राज काज चलाती हैं एवं श्रष्टि के अंत काल में ये मातृका शक्तियां वापस माँ आदिशक्ति में पुनः विलीन हो जाती हैं और सिर्फ माँ आदिशक्ति ही बचती हैं फिर से पुनर्निर्माण के लिए ! बहुत बार देखने में आता है कि लोग वर्गीकरण करने लग जाते हैं और उसी वर्गीकरण के आधार पर साधकगण अन्य साधकों को हीन - हेय दृष्टि से देखने लग जाते हैं क्योंकि उनकी नजर में उनके द्वारा पूजित रूप को वे मूल या प्रधान समझते हैं और अन्य को द्वितीय भाव से देखते हैं जबकि ऐसा उचित नहीं है हर साधक का दुसरे साधक के लिए सम भाव होना चाहिए मैं
किन्तु नैतिक दृष्टिकोण और अध्यात्मिकता के आधार पर यदि देखा जाये तो न तो कोई उच्च है न कोई हीन हम आराधना करते हैं तो कोई अहसान नहीं करते यह सिर्फ अपनी मानसिक शांति और संतुष्टि के लिए और अगर कोई दूसरा करता है तो वह भी इसी उद्देश्य कि पूर्ती के लिए !अब अगर हम अपने विषय पर आ जाएँ तो इस मृत्यु लोक में मातृ शक्ति के जितने भी रूप विदयमान हैं सब एक ही विराट महामाया आद्यशक्ति के अंग,भाग , रूप हैं साधकों को वे जिस रूप की साधना करते हैं उस रूप के लिए निर्धारित व्यवहार और गुणों के अनुरूप फल प्राप्त होता है। चौंसठ योगिनियां वस्तुतः माता दुर्गा कि सहायक शक्तियां है जो समय समय पर माता दुर्गा कि सहायक शक्तियों के रूप में काम करती हैं एवं दुसरे दृष्टिकोण से देखा जाये तो यह मातृका शक्तियां तंत्र भाव एवं शक्तियों से परिपूरित हैं और मुख्यतः तंत्र ज्ञानियों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र हैं !

जिन नामों का अस्तित्व मिलता है वे इस प्रकार हैं :-

१. बहुरूपा
२. तारा
३. नर्मदा
४. यमुना
५. शांति
६. वारुणी
७. क्षेमकरी
८. ऐन्द्री
९. वाराही
१०. रणवीरा
११. वानरमुखी
१२. वैष्णवी
१३. कालरात्रि
१४. वैद्यरूपा
१५. चर्चिका
१६. बेताली
१७. छिनमास्तिका
१८. वृषभानना
१९. ज्वाला कामिनी
२०. घटवारा
२१. करकाली
२२. सरस्वती
२३. बिरूपा
२४. कौबेरी
२५. भालुका
२६. नारसिंही
२७. बिराजा
२८. विकटानन
२९. महालक्ष्मी
३०. कौमारी
३१. महामाया
३२. रति
३३. करकरी
३४. सर्पश्या
३५. यक्षिणी
३६. विनायकी
३७. विन्द्यावालिनी
३८. वीरकुमारी
३९. माहेश्वरी
४०. अम्बिका
४१. कामायनी
४२. घटाबारी
४३. स्तुति
४४. काली
४५. उमा
४६. नारायणी
४७. समुद्रा
४८. ब्राह्मी
४९. ज्वालामुखी
५०. आग्नेयी
५१. अदिति
५२. चन्द्रकांति
५३. वायुबेगा
५४. चामुंडा
५५. मूर्ति
५६. गंगा
५७. धूमावती
५८. गांधारी
५९. सर्व मंगला
६०. अजिता
६१. सूर्य पुत्री
६२. वायु वीणा
६३. अघोरा
६४. भद्रकाली

चौंसठ योगिनी मंत्र :-
Rajesh Mishra, Kolkata


१. ॐ काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा
२. ॐ कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा
३. ॐ कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा
४. ॐ कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा
५. ॐ विरोधिनी विलासिनी स्वाहा
६. ॐ विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा
७. ॐ उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा
८. ॐ उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा
९. ॐ दीपा मुक्तिः रक्ता देहा स्वाहा
१०. ॐ नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा
११. ॐ घना महा जगदम्बा स्वाहा
१२. ॐ बलाका काम सेविता स्वाहा
१३. ॐ मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा
१४. ॐ मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा
१५. ॐ मिता तंत्र कौला दीक्षा स्वाहा
१६. ॐ महाकाली सिद्धेश्वरी स्वाहा
१७. ॐ कामेश्वरी सर्वशक्ति स्वाहा
१८. ॐ भगमालिनी तारिणी स्वाहा
१९. ॐ नित्यकलींना तंत्रार्पिता स्वाहा
२०. ॐ भेरुण्ड तत्त्व उत्तमा स्वाहा
२१. ॐ वह्निवासिनी शासिनि स्वाहा
२२. ॐ महवज्रेश्वरी रक्त देवी स्वाहा
२३. ॐ शिवदूती आदि शक्ति स्वाहा
२४. ॐ त्वरिता ऊर्ध्वरेतादा स्वाहा
२५. ॐ कुलसुंदरी कामिनी स्वाहा
२६. ॐ नीलपताका सिद्धिदा स्वाहा
२७. ॐ नित्य जनन स्वरूपिणी स्वाहा
२८. ॐ विजया देवी वसुदा स्वाहा
२९. ॐ सर्वमङ्गला तन्त्रदा स्वाहा
३०. ॐ ज्वालामालिनी नागिनी स्वाहा
३१. ॐ चित्रा देवी रक्तपुजा स्वाहा
३२. ॐ ललिता कन्या शुक्रदा स्वाहा
३३. ॐ डाकिनी मदसालिनी स्वाहा
३४. ॐ राकिनी पापराशिनी स्वाहा
३५. ॐ लाकिनी सर्वतन्त्रेसी स्वाहा
३६. ॐ काकिनी नागनार्तिकी स्वाहा
३७. ॐ शाकिनी मित्ररूपिणी स्वाहा
३८. ॐ हाकिनी मनोहारिणी स्वाहा
३९. ॐ तारा योग रक्ता पूर्णा स्वाहा
४०. ॐ षोडशी लतिका देवी स्वाहा
४१. ॐ भुवनेश्वरी मंत्रिणी स्वाहा
४२. ॐ छिन्नमस्ता योनिवेगा स्वाहा
४३. ॐ भैरवी सत्य सुकरिणी स्वाहा
४४. ॐ धूमावती कुण्डलिनी स्वाहा
४५. ॐ बगलामुखी गुरु मूर्ति स्वाहा
४६. ॐ मातंगी कांटा युवती स्वाहा
४७. ॐ कमला शुक्ल संस्थिता स्वाहा
४८. ॐ प्रकृति ब्रह्मेन्द्री देवी स्वाहा
४९. ॐ गायत्री नित्यचित्रिणी स्वाहा
५०. ॐ मोहिनी माता योगिनी स्वाहा
५१. ॐ सरस्वती स्वर्गदेवी स्वाहा
५२. ॐ अन्नपूर्णी शिवसंगी स्वाहा
५३. ॐ नारसिंही वामदेवी स्वाहा
५४. ॐ गंगा योनि स्वरूपिणी स्वाहा
५५. ॐ अपराजिता समाप्तिदा स्वाहा
५६. ॐ चामुंडा परि अंगनाथा स्वाहा
५७. ॐ वाराही सत्येकाकिनी स्वाहा
५८. ॐ कौमारी क्रिया शक्तिनि स्वाहा
५९. ॐ इन्द्राणी मुक्ति नियन्त्रिणी स्वाहा
६०. ॐ ब्रह्माणी आनन्दा मूर्ती स्वाहा
६१. ॐ वैष्णवी सत्य रूपिणी स्वाहा
६२. ॐ माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा
६३. ॐ लक्ष्मी मनोरमायोनि स्वाहा
६४. ॐ दुर्गा सच्चिदानंद स्वाहा

पति के लिए रखा जानें वाला करवाचौथ् व्रत इस बार 17 अक्टूबर को


करवा चौथ एक ऐसा फेस्टिवल है, जिसका इंतजार लगभग सभी शादीशुदा महिलाओं को होता है. इस दिन सुहागनें अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं. हिंदू मान्यता के अनुसार करवा चौथ (Karwa Chauth 2019) महज एक व्रत नहीं है, यह पति-पत्नी के रिश्ते का जश्न है. उसकी मर्यादा और स्नेह के अनोखे संतुलन का एक खूबसूरत त्यौहार है. अब आप सोच रहे होंगे कि साल 2019 में करवाचौथ कि दिन है. तो हम आपको बता चुके हैं कि इस साल करवाचौथ अक्टूबर महीने में पड़ेगा. 17 अक्टूबर, 2019 के दिन करवाचौथ (When is Karwa Chauth 2019) होगा. इस दिन वीरवार है. करवाचौथ शरद नवरात्र 2019 के बाद आएगा. इससे पहले दुर्गा जयंती भी मनाई जाएगी. करवाचौथ के बाद धनतेरस, दिवाली (Diwali 2019), नरक चतुर्दशी, गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja 2019) और भाई दूज 2019 मनाया जाएगा. आपको बताते चलें अक्टूबर महीने में पड़ने वाले त्योहारों के बारे में – दो अक्टूबर को गांधी जयंती के बाद दुर्गा महानवमी 2019, रविवार 6 अक्टूबर को है. इसके बाद शरद नवरात्रि 2019 7 अक्टूबर से हैं. इस साल दशहरा 8 अक्टूबर को मंगलवार के दिन है. इसके बाद 17 अक्टूबर को करवाचौथ का व्रत.

करवा चौथ की तैयारियां कई दिन पहले से होती हैं

पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाई जाने वाले करवा चौथ की तैयारियां महिलाएं कुछ दिन पहले से ही शुरू कर देती हैं. इस दिन पहने जाने वाले कपड़े पहले ही सलेक्ट कर लिए जाते हैं, अक्सर महिलाएं लाल और पिंक रंग पहनना ही पसंद करती हैं. उसके साथ के लिए वह नए गहनें खरीदती हैं और मेहंदी लगाती हैं. बाजार में करवा चौथ से एक दिन पहले मेहंदी लगाने वाले एक हाथ के 1000 रुपये तक लेते हैं, बाकी मेंहदी के रेट उसके डिज़ाइन और हाथों के एरिया पर भी निर्भर करता है.
करवा चौथ व्रत विधि


अगर आपने ‘कभी खुशी, कभी गम’ फिल्म देखी है, तो आप सरगी के बारे में बखूबी जानते होंगे. यह परंपरा पंजाबियों में ज्‍यादा मनाई जाती है, यह एक तरह की खाने की थाली होती है, जो कि सास अपनी बहू के लिए लेकर आती है. इसमें वह खाना होता है, जो सुबह जल्दी उठ के सूर्य निकलने से पहले खाया जाता है. इसमें नट्स, सेवईं की खीर और मठरी होती है. सूरज निकलने से पहले यह सब अच्छे से खाकर, खूब सारा पानी पीया जाता है, क्योंकि इसके बाद चांद निकलने तक कुछ नहीं खाया जा सकता.


Karwa Chauth 2019: करवाचौथ की पूजा के दौरान करवाचौथ की कथा कही जाती है.


वेट मैनेजमेंट एक्सपर्ट, गार्दी शर्मा ने करवा चौथ का व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए कुछ सरगी टिप्स शेयर किए. आइए जानें-
अपनी सरगी में केला, पपीता, अनार, बेरिज़, सेब आदि फलों को शामिल करना न भूलें.
सुबह के समय फ्राईड और ऑयली खाना जैसे परांठे और पकौड़े आदि से परहेज करना चाहिए, क्योंकि यह खाना हैवी होता है, जिसकी वजह से आपको चक्कर आ सकते हैं. सब्जियों और पनीर के साथ मल्टीग्रेन चपाती आदि खाई जा सकती है.
चाय और कॉफी लेने से परहेज करें, क्योंकि इससे डी-हाइड्रेशन हो सकता है. इसकी जगह आप एक ग्लास फ्रूट जूस, दूध, छाछ और एक कप ग्रीन टी पी सकते हैं.
मिठाई या मीठा न खाएं. इसकी जगह खजूर, अंजीर और खूबानी आदि खाई जा सकती हैं.
अखरोट, बादाम और पिस्ता आदि खाए जा सकते हैं.
करवा चौथ पूजा विधि


व्रत के दिन टाइम धीरे-धीरे निकलता है, लेकिन आपको भूख या प्यास महसूस होने से पहले शाम हो जाती है. इस टाइम लेडीज़ अच्छे से तैयार होकर पूजा करने के लिए इकट्ठी होती हैं. कथा तेज़ आवाज़ में पढ़ी जाती है. साथ ही, मिठाई, एक ग्लास पानी, दीया (दीपक) और पूजा का दूसरा सामान थाली में रखा जाता है, जो कथा के टाइम सर्कल में घूमती है. इसके बाद चांद निकलने का इंतजार किया जाता है.
कैसे खोलें करवाचौथ का व्रत


हर कोई अलग-अलग तरीके से व्रत तोड़ता है. कोई बिल्कुल पारंपरिक तरीके से छलनी में से अपने पति को देखता है और व्रत तोड़ने के लिए अपने पति के हाथों से पानी की एक घूंट पीती है. आज के समय में, पति अपनी पत्नियों के लिए भी व्रत रखते हैं. इसके बाद एक साथ खाना एंजॉय करते हैं.




पूरा दिन व्रत रखने के बाद जरूरी है कि आप ध्यान रखें कि व्रत कैसे तोड़ें
व्रत खोलने की शुरूआत एक ग्लास पानी से करें और इसके बाद थोड़े से नट्स खाएं. दो बादाम, एक या दो अखरोट और थोड़े सूरजमुखी के बीज खाएं.
पेट में असिडिटी का स्तर उच्च होता है, इसलिए चाय और कॉफी से परहेज करें.
ऑयली, तीखा और तले हुए खाने से परहेज करें. हल्का और आसानी से पच जाने वाला खाना खाएं, जैसे- इडली, डोसा, सांभर के साथ उत्तपम, सब्जियां, दलिया, ओट्स मील, सब्जी या पनीर भूर्जी के साथ चपाती, दाल के साथ उबले हुए चावल या पुलाव आदि.
थोड़ा दही खाएं.
मुंह मीठा करने के लिए दो-तीन खजूर खाए जा सकते हैं, डार्क चॉकलेट का एक छोटा पीस और घर में बनी कुल्फी के साथ अपने मील को खत्म किया जा सकता है.

Karva Chauth 2019 Shubh Muhurt

करवा चौथ 2019
Rajesh Mishra, Kolkata

भारत में हिंदू धर्मग्रंथों, पौराणिक ग्रंथों और शास्त्रादि के अनुसार हर महीने कोई न कोई उपवास, कोई न कोई पर्व, त्यौहार या संस्कार आदि आता ही है लेकिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जो उपवास किया जाता है उसका सुहागिन स्त्रियों के लिये बहुत अधिक महत्व होता है। दरअसल इस दिन को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन यदि सुहागिन स्त्रियां उपवास रखें तो उनके पति की उम्र लंबी होती है और उनका गृहस्थ जीवन सुखद होने लगता है। हालांकि पूरे भारतवर्ष में हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग बड़ी धूम-धाम से इस त्यौहार को मनाते हैं लेकिन उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि में तो इस दिन अलग ही नजारा होता है। करवाचौथ व्रत के दिन एक और जहां दिन में कथाओं का दौर चलता है तो दूसरी और दिन ढलते ही विवाहिताओं की नज़रें चांद के दिदार के लिये बेताब हो जाती हैं। चांद निकलने पर घरों की छतों का नजारा भी देखने लायक होता है। दरअसल सारा दिन पति की लंबी उम्र के लिये उपवास रखने के बाद आसमान के चमकते चांद का दिदार कर अपने चांद के हाथों से निवाला खाकर अपना उपवास खोलती हैं। करवाचौथ का व्रत सुबह सूर्योदय से पहले ही 4 बजे के बाद शुरु हो जाता है और रात को चंद्रदर्शन के बाद ही व्रत को खोला जाता है। इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है और करवाचौथ व्रत की कथा सुनी जाती है। सामान्यत: विवाहोपरांत 12 या 16 साल तक लगातार इस उपवास को किया जाता है लेकिन इच्छानुसार जीवनभर भी विवाहिताएं इस व्रत को रख सकती हैं। माना जाता है कि अपने पति की लंबी उम्र के लिये इससे श्रेष्ठ कोई उपवास अतवा व्रतादि नहीं है।

करवा चौथ पर्व तिथि व मुहूर्त 2019


करवा चौथ 2019
17 अक्तूबर
करवा चौथ पूजा मुहूर्त- 17:46 से 19:02
चंद्रोदय- 20:20
चतुर्थी तिथि आरंभ- 06:48 (17 अक्तूबर)
चतुर्थी तिथि समाप्त- 07:28 (18 अक्तूबर)

शनिवार, 5 अक्टूबर 2019

DHARMMARG: 51 Shaktipeeth, Katha or Mahatav

DHARMMARG: 51 Shaktipeeth, Katha or Mahatav: पवित्र 51 शक्ति पीठ, कथा और महत्व पवित्र शक्ति पीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थापित हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। देव...

51 Shaktipeeth, Katha or Mahatav

पवित्र 51 शक्ति पीठ, कथा और महत्व

पवित्र शक्ति पीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थापित हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है, वहीं तन्त्र चूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं। वर्तमान में भारत में 42, पाकिस्तान में 1, बांग्लादेश में 4, श्रीलंका में 1, तिब्बत में 1 तथा नेपाल में 2 शक्ति पीठ है।

कैसे बने शक्तिपीठ, पढ़ें पौराणिक कथा :

देवी माता के 51 शक्तिपीठों के बनने के सन्दर्भ में पौराणिक कथा प्रचलित है। राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया था और भगवान शिव से विवाह किया। एक बार मुनियों के एक समूह ने यज्ञ आयोजित किया। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए। भगवान शिव दक्ष के दामाद थे। यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए। अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता और सती के पति भगवान शिव को इस यज्ञ में शामिल होने के लिए निमंत्रण नहीं भेजा।
भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए। नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की जरूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने उन्हें समझाया लेकिन वह नहीं मानी तो स्वयं जाने से इंकार कर दिया।
शंकरजी के रोकने पर भी जिद कर सती यज्ञ में शामिल होने चली गई। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष, भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित सती ने यज्ञ-कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी।
भगवान शंकर को जब पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय व हाहाकार मच गया। भगवान शंकर के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सज़ा दी। भगवान शिव ने यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भूमंडल पर भ्रमण करने लगे।
भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिए और कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के अंग विभक्त होकर गिरेंगे, वहां महाशक्तिपीठ का उदय होगा। सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से सती शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। > 'तंत्र-चूड़ामणि' के अनुसार इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को पुन: पति रूप में प्राप्त किया।

1 कालीपीठ- कालिका
कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। यह पीठ स्थान हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन हावड़ा है और निकटतम मेट्रो स्टेशन कालीघाट है। मंदिर का दौरा करने का सबसे अच्छा समय सुबह या दोपहर है।
2 कामगिरि- कामाख्‍या
असम के गुवाहाटी जिले में स्‍थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर माता का योनि भाग गिरा था। गुवाहाटी असम की राजधानी है, और सभी प्रकार की यात्रा सुविधाओं से निपुण है। यदि हम ट्रेन से जाते हैं और सीधे मंदिर से संपर्क करना चाहते हैं, तो हमें निलाचल स्टेशन पर उतरना होगा। वहां से, पहाड़ी पर चढ़ने के लिए दो मार्ग हैं एक कदम मार्ग (लगभग 600 कदम) और बस मार्ग (कामख्या द्वार के माध्यम से, लगभग 3 किलोमीटर।
3 तारा तेरणी
तारा तेरणी मंदिर को सबसे अधिक सम्मानित शक्ति पीठ और हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थान केंद्रों में से एक माना जाता है। यह माना जाता है कि देवी माता सती का स्तन कुमारी पहाड़ियों पर गिर गया जहां तारा तेरणी पीठ स्थित है। ब्रह्मपुर मंदिर से 35 किमी, भुवनेश्वर (165 किमी) और पुरी (220 किमी) स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन हार्हाह-चेन्नई लाइन पर दक्षिण-पूर्व रेलवे पर बेरहमपुर है। 165 किमी दूर स्थित, भुवनेश्वर निकटतम हवाई अड्डा है, जहां से दिल्ली और कलकत्ता जैसे प्रमुख शहरों के लिए उड़ानें ली जा सकती है।
4. पडा बिमला
विमला मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो देवी विमला को समर्पित है, जो भारत के उड़ीसा राज्य में पुरी में जगन्नाथ मंदिर परिसर के भीतर स्थित है। यह एक शक्ति पीठ के रूप में माना जाता है। कहा जाता है कि यहां देवी माता सती के पैर गिरे थे।
राज्य परिवहन विभाग द्वारा चलाए जा रहे मिनी बसों भुबनेश्वर तक पहुंचा जा सकता है। पुरी का अपना रेलवे स्टेशन है जो इसे कोलकाता, नई दिल्ली, अहमदाबाद और विशाखापत्तनम जैसे शहरों में जोड़ता है, जबकि भुवनेश्वर भी ज्यादातर प्रमुख भारतीय शहरों से जुड़ा हुआ है।निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर में स्थित है जो 56 किमी की दूरी पर है।
अन्य प्रमुख शक्ति पीठ की सूची इस प्रकार है:
1. किरीट- विमला
पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था। मुर्शिदाबाद कोलकाता से 239 किलोमीटर की दूरी पर है और और यहां पहुंचने में लगभग 6 घंटे लगते हैं।
2. वृंदावन- उमा
उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन तहसील में माता के बाल के गुच्छे गिरे थे। वृंदावन आगरा से 50 किलोमीटर और दिल्ली से 150 किलोमीटर दूर है। निकटतम रेलवे स्टेशन मथुरा, 12 किमी की दूरी पर है।
3. करवीरपुर या शिवहरकर
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित यह शक्तिपीठ है, जहां माता की आंखें गिरी थी। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। उल्लेख है कि वर्तमान कोल्हापुर ही पुराण प्रसिद्ध करवीर क्षेत्र है। ऐसा उल्लेख देवीगीता में मिलता है। कोल्हापुर सड़क, रेलवे और वायु मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। निकटतम बस स्टैंड कोल्हापुर में है। हैदराबाद, मुम्बई आदि जैसे विभिन्न शहरों से कई सीधी बसें हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन कोल्हापुर में है।

4. श्रीपर्वत- श्रीसुंदरी
कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के पर्वत पर माता के दाएँ पैर की पायल गिरी थी। जुलाई से सितंबर तक सड़क से जाने के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है। नजदीकी रेलवे स्टेशन जम्मू तवी है जो लद्दाख से 700 किमी दूर है। निकटतम हवाई अड्डा लेह में है
5. वाराणसी- विशालाक्षी
उत्तरप्रदेश के काशी में मणिकर्णिक घाट पर माता के कान की बाली गिरी थी। वाराणसी के दो प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं: शहर के केंद्र में वाराणसी जंक्शन, और मुगल सराय जंक्शन शहर लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है। वाराणसी हवाई अड्डा शहर के केंद्र से लगभग 25 किलोमीटर दूर है।
6. सर्वेशेल या गोदावरीतीर
आंध्रप्रदेश के राजामुंद्री क्षेत्र स्थित गोदावरी नदी के तट पर कोटिलिंगेश्वर पर माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे। निकटतम रेलवे स्टेशन भी बहुत कम दूरी पर है। लोग रेलवे स्टेशन से स्थानीय बसों सेवा का प्रयोग कर सकते हैं राजमुंदरी रेलवे स्टेशन आंध्र प्रदेश के सबसे बड़े रेलवे स्टेशनों में से एक है। इस मंदिर के निकट प्रमुख शहरों में हवाई अड्डे की सेवाएं उपलब्ध हैं। राजमुंदरी हवाई अड्डा मधुरपाड़ी के पास स्थित है, वह शहर से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर है।
7. विरजा- विरजाक्षेत्र
यह शक्ति पीठ उड़ीसा के उत्कल में स्थित है। यहाँ पर माता माता सती की नाभि गिरी थी। कटक, भुवनेश्वर, कोलकाता और ओडिशा के अन्य छोटे शहरों से बस का लाभ लेने से पर्यटक स्थल पर पहुंच सकते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन जाजपुर केंझार रोड रेलवे स्टेशन है। निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर है।
8. मानसा-दाक्षायणी
तिब्बत में स्थित मानसरोवर के पास माता का यह शक्तिपीठ स्थापित है। इसी जगह पर माता माता सती का दायाँ हाथ गिरा था। भारतीय श्रद्धालुओं की एक सीमित संख्या को कैलाश मानसरोवर हर साल यात्रा करने की अनुमति है। भारतीय पक्ष से कैलाश पर्वत तक पहुंचने के लिए दो मार्ग हैं। उनका उल्लेख नीचे दिया गया है: मार्ग 1: लिपुलख पास मार्ग दिल्ली में 3-4 दिन के प्रवास के साथ शुरू होता है। मार्ग 2: नाथु ला पास मार्ग यात्रा दिल्ली से 3-4 दिन के प्रवास के साथ शुरू होती है।
9. नेपाल-महामाया
नेपाल के पशुपतिनाथ नाथ में स्थित इस शक्तिपीठ में माँ माता सती के दोनों घुटने गिरे थे। यहां पहुंचने के कई साधन है। श्रद्धालु बस, ट्रेन और हवाई रास्ते द्वारा काठमांडू पहुंच सकते हैं।
10. हिंगलाज
पकिस्तान, कराची से १२५ किमी उत्तर पूर्व में हिंगला या हिंगलाज शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ माता माता सती का सर गिरा था। कराची से वार्षिक तीर्थ यात्रा अप्रैल के महीने में शुरू होती है। यहां वाहन द्वारा पहुंचने में लगभग 4 से 5 घंटे लगते हैं
11. सुगंधा- सुनंदा
बांग्लादेश के शिकारपुर से 20 किमी दूर सोंध नदी के किनारे स्थित है माँ सुगंध का शक्तिपीठ है जहाँ माता माता सती की नासिका गिरी थी। भारत से जाने वाले लोगों को इस तीर्थ यात्रा के लिए वीजा प्राप्त करना होगा। श्रद्धालु वायु, समुद्र या सड़क के माध्यम से इस शक्तिपीठ तक पहुंच सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए, बरीयाल शहर में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है।
12. कश्मीर- महामाया
कश्मीर के पहलगाव जिले के पास माता का कंठ गिरा था। इस सशक्तिपीठ को महामाया के नाम से जाना जाता है। जम्मू और श्रीनगर सड़क के माध्यम से जुड़े हुए हैं। यात्रा के इस भाग के लिए बसें उपलब्ध की जा सकती हैं। जम्मू और श्रीनगर तक पहुंचने के लिए हवाई रास्ते का भी प्रयोग किया जा सकता है।

Rajesh Mishra, Kolkata


13. ज्वालामुखी- सिद्धिदा (अंबिका)
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में माता माता सती की जीभ गिरी थी। इस शक्तिपीठ को ज्वालाजी स्थान कहते हैं। यह हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी से 30 किमी दक्षिण की और में स्थित है, धर्मशाला से 60 किमी की दूरी पर है। मनाली, देहरादून और दिल्ली आदि से धर्मशाला के लिए कई निजी बस उपलब्ध की जा सकती हैं।
14. जालंधर- त्रिपुरमालिनी
पंजाब के जालंधर छावनी के पास देवी तलाब है जहाँ माता का बायाँ वक्ष (स्तन) गिरा था। यह निकटतम रेलवे स्टेशन से लगभग 1 किलोमीटर दूर है और शहर के केंद्र में स्थित है।
15. वैद्यनाथ- जयदुर्गा
झारखंड में स्थित वैद्यनाथधाम पर माता का हृदय गिरा था। यहाँ माता के रूप को जयमाता और भैरव को वैद्यनाथ के रूप से जाना जाता है। निकटतम रेलवे स्टेशन देवघर है, जो 7 किमी की शाखा लाइन का एक टर्मिनल स्टेशन है, जो हावड़ा-दिल्ली मुख्य लाइन पर जसीडिह जंक्शन से शुरू हो रहा है।
16. गंडकी- गंडकी
नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ शक्तिपीठ स्थित है जहाँ माता का मस्तक या गंडस्थल गिरा था। काठमांडू से पोखरा और फिर पोखरा से जेमॉम हवाई अड्डे तक जाया जा सकता है। वहां से मुक्तिनाथ शक्तिपीठ तक जीप ली जा सकती है। काठमांडू (नेपाल की राजधानी) में एक समर्पित हवाई अड्डा है, और इस हवाई अड्डे में दोनों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का प्रावधान है।
17. बहुला- बहुला (चंडिका)
बंगाल से वर्धमान जिला से 8 किमी दूर अजेय नदी के तट पर स्थित बाहुल शक्तिपीठ स्थापित है जहाँ माता माता सती का बायां हाथ गिरा था। देश के अन्य प्रमुख शहरों से कटवा तक कोई नियमित उड़ानें नहीं हैं। निकटतम हवाई अड्डा नेताजी सुभाष चंद्र हवाई अड्डा है। कातावा नियमित ट्रेनों के माध्यम से देश के अन्य प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
18. उज्जयिनी- मांगल्य चंडिका
बंगाल में वर्धमान जिले के उज्जय‍िनी नामक स्थान पर माता की दायीं कलाई गिरी थी। निकटतम रेलवे स्टेशन गसकारा स्टेशन है जो मंदिर से लगभग 16 किमी दूर है। निकटतम हवाई अड्डा डमडुम हवाई अड्डे है। वहां से शक्ति पीठ तक पहुंचने के लिए कार या ट्रेन उपलब्ध की जा सकती है।
19. त्रिपुरा- त्रिपुर सुंदरी
त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गाँव पर माता का दायाँ पैर गिरा था। निकटतम हवाई अड्डा अगरतला में है, जहां से आप आसानी से सड़क तक मंदिर पहुंच सकते हैं। निकटतम रेल प्रमुख एनए ई रेलवे पर कुमारघाट है। यह अगरतला से 140 किमी की दूरी पर है। यहां से आप मंदिर तक पहुंचने के लिए बस या टैक्सी चुन सकते हैं।
20. चट्टल - भवानी
बांग्लादेश में चिट्टागौंग (चटगाँव) जिला के निकट चंद्रनाथ पर्वत शिखर पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दायीं भुजा गिरी थी। रेल गाड़ियां और बसे, चटगांव से, ढाका से (6 घंटे), सिलेहट (6 घंटे) और अन्य शहरों से उपलब्ध हैं। यहां एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे भी है।
21. त्रिस्रोता- भ्रामरी
बंगाल के सालबाढ़ी ग्राम स्‍थित त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायाँ पैर गिरा था। हम हवा या रेल द्वारा पंचागढ़ तक नहीं पहुंच सकते। ढाका और पंचगढ़ के बीच सड़क की दूरी 344 कि.मी. है। हिनो-कुर्सी कोच सेवाएं (निजी क्षेत्र), ढाका के गब्तपोली, शेमॉली और मीरपुर रोड बस टर्मिनलों से, पंचागढ़ शहर तक उपलब्ध हैं। यहां पहुंचने में लगभग 8 घंटे लगते हैं।
Rajesh Mishra, Kolkata

22. प्रयाग- ललिता
उत्तर प्रदेश के इलाहबाद शहर के संगम तट पर माता की हाथ की अँगुली गिरी थी। इस शक्तिपीठ को ललिता के नाम से भी जाना जाता हैं। इलाहाबाद और ललिता देवी मंदिर (शक्ति पीठ) के बीच लगभग ड्राइविंग दूरी 3 किलोमीटर है।
23. जयंती- जयंती
यह शक्तिपीठ आसाम के जयंतिया पहाड़ी पर स्थित है जहां देवी माता सती की बाईं जंघा गिरी थी। यहां देवी माता सती को जयंती और भगवान शिव को कृमाशिश्वर के रूप में पूजा की जाती है।
24. युगाद्या- भूतधात्री
पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के पर माता के दाएँ पैर का अँगूठा गिरा था। यह शक्ति पीठ पश्चिम बंगाल के वर्धमान से लगभग 32 किलोमीटर दूर स्थित है। हमें निगम स्टेशन से बर्दवान-कटोआ रेलवे लेनी चाहिए।
25. कन्याश्रम- सर्वाणी
कन्याश्रम में माता का पीठ गिरी थी। इस शक्तिपीठ को सर्वाणी के नाम से जाना जाता है।कन्याश्राम को कालिकशराम या कन्याकुमारी शक्ति पीठ के रूप में भी जाना जाता है।कन्याकुमारी दक्षिण भारत के सभी शहरों से सड़क के मार्ग से जुड़ा हुआ है। कन्याकुमारी ब्रॉड गेज द्वारा त्रिवेंद्रम, दिल्ली और मुंबई से जुड़ा हुआ है। तिरुनेलवेली (85 किमी) अन्य नजदीकी रेलवे जंक्शन है जो सड़क मार्ग द्वारा नागरकोइल (19 किमी) तक पहुंचा जा सकता है।निकटतम हवाई अड्डा त्रिवेंद्रम (87 किमी) मे स्थित है।
26. कुरुक्षेत्र- सावित्री
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में माता के टखने गिरे थे। इस शक्तिपीठ को सावित्री के नाम से जाना जाता है। थनेसर (स्टेशनेश्वर / कुरिक्षेत्र) दिल्ली से 160 किलोमीटर और चंडीगढ़ से 90 किलोमीटर दूर है। यह पिपली से 6 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 1 पर एक महत्वपूर्ण सड़क जंक्शन पर है। यह कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर और पिपली बस स्टैंड से 7 किलोमीटर दूर है।
27. मणिदेविक- गायत्री
मनीबंध, अजमेर से 11 किमी उत्तर-पश्चिम में पुष्कर के पास गायत्री पहाड़ के पास स्थित है जहां माता की कलाई गिरी थी।अजमेर से ट्रेन और बस सुविधा उपलब्ध हैं, और वहां से, हमें पुष्कर पहुंचने के लिए टैक्सी या रिक्शा मिल सकता है। पुष्कर से निकटतम हवाई अड्डा जयपुर में है।
28. श्रीशैल- महालक्ष्मी
बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के पास शैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था। बांग्लादेश को दुनिया के किसी भी हिस्से से पहुंचा जा सकता है। राष्ट्रीय हवाई अड्डा ढाका में है, जो शहर से 20 किमी की दूरी पर है।
29. कांची- देवगर्भा
कंकाललाला, बीरभूम जिले में बोलीपुर स्टेशन के 10 किमी उत्तर-पूर्व में कोप्पई नदी के तट पर, देवी स्थानीय रूप से कंकालेश्वरी के रूप में जानी जाती है, जहां माता का श्रोणि गिरा था।
30. पंचसागर- वाराही
पंचासागर शक्ति पीठ, उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास स्थित जहां मां माता सती के निचले दंत गिरे थे। निकटतम हवाई अड्डा इलाहाबाद में है और यहां तक राष्ट्रीय उड़ानें उपलब्ध हैं। अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए, दिल्ली निकटतम हवाई अड्डा है। निकटतम रेलवे स्टेशन वाराणसी रेलवे स्टेशन है। दिल्ली, अहमदाबाद, पटना और अन्य प्रमुख शहरों सड़क द्वारा वाराणसी पहुंचा जा सकता है।
31. करतोयातट- अपर्णा
अपर्णा शक्ति पीठ एक ऐसी जगह है जहां देवी माता सती के बाईं पायल गिरी थी। यहां देवी को अपर्णा या अर्पान के रूप में पूजा की जाती है जो कि कुछ भी नहीं खाती और भगवान शिव को बैराभा का रूप मिला। भवानीपुर गांव करवतया नदी के किनारे पर है, शेरपुर (सेरापुर) से 28 किमी। हम ढाका से भानापुर जामुना ब्रिज तक जा सकते हैं। सिराजगंज जिले में चांदिकोना गुजरने के बाद, हम घोगा बोट-टूला बस स्टॉप पर पहुंचते हैं, जहां से भावानिपपुर मंदिर पास है।
32. विभाष- कपालिनी
पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर स्थान पर माता की बाएं टखने गिरे थे। यह कोलकाता से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर है, और बंगाल की खाड़ी के करीब रून्नारयन नदी के तट पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन तमलुक ही है।
33. कालमाधव -देवी काली
मध्यप्रदेश के अमरकंटक के कालमाधव स्थित शोन नदी के पास माता का बायाँ नितंब गिरा था। शाहडोल, उमरिया, जबलपुर, रीवा, बिलासपुर, अनुपपुर और पेंद्र रोड से अमरकंटक शहर तक बस सुविधा उपलब्ध की जा सकती है। निकटतम हवाई अड्डा, जबलपुर (228 के.एम.) और रायपुर (230 कि.मी.) हैं।
34. शोणदेश- नर्मदा (शोणाक्षी)
मध्यप्रदेश के अमरकंटक जिले में स्थित नर्मदा के उद्गम पर माता का दायाँ नितंब गिरा था। शाहडोल, उमरिया, जबलपुर, रीवा, बिलासपुर, अनुपपुर और पेंद्र रोड से अमरकंटक शहर तक बस सुविधा उपलब्ध की जा सकती है। निकटतम हवाई अड्डा, जबलपुर (228 के.एम.) और रायपुर (230 कि.मी.) हैं।
35. रामगिरि- शिवानी
उत्तरप्रदेश के चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता का दायाँ स्तन गिरा था। चित्रकूट के लिए निकटतम रेल प्रमुख चित्रकूट धाम (11 किलोमीटर) झांसी-माणिकपुर मुख्य लाइन पर है। चित्रकूट बांदा, झांसी, महोबा, चित्रकूट धाम, हरपालपुर, सतना और छतरपुर के साथ सड़क से जुड़ा हुआ है। निकटतम हवाई अड्डा खजुराहो (175 के.एम.) में है। मंदाकीनी नदी के तट पर चित्रकूट के 2 किमी दक्षिण में स्थित जानकी सरोवर/ जानकी कुंड नाम का एक पवित्र तालाब, शक्तिपीठ के रूप में माना जाता है। कुछ लोग इसे राजगिरि (आधुनिक राजगीर) कहते हैं,यह एक प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थस्थान हैं। राजगीर के गिद्ध का पीक (ग्रीधकोटा / ग्राध्रुका) को शक्ति पिठ के रूप में माना जाता है।
36. शुचि- नारायणी
तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है, जहाँ पर माता की ऊपरी दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे। कन्याकुमारी तक पहुंचने के लिए रेलवे सबसे सामान्य साधन है। कन्याकुमारी से, सुचितंद्र मंदिर तक पहुंचने के लिए स्थानीय परिवहन की आवश्यकता है। निकटतम हवाई अड्डा त्रिवेन्द्रम है।
37. प्रभास- चंद्रभागा
गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित सोमनाथ मंदिर के प्रभास क्षेत्र में माता का उदर गिरा था। वायुमार्ग के संदर्भ में, दोनों अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय हवाईअड्डा जूनागढ़ के पास स्थित हैं। देश के हर हिस्से से ट्रेनें इस शहर की तरफ आती हैं। कई निजी बस सेवाएं हैं जो विभिन्न शहरों से जुनागढ़ तक जाती हैं।
38. भैरवपर्वत- अवंती
मध्यप्रदेश के उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के ऊपरीओष्ठ गिरे थे। उज्जैन भारत के सभी शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और लोग यहां आने के लिए परिवहन के सभी साधनों का उपयोग कर सकते हैं। इंदौर निकटतम हवाई अड्डा इंदौर मैं है और यह 52 किलोमीटर की दूरी पर है। निकटतम रेलवे स्टेशन उज्जैन ही है।
39. जनस्थान- भ्रामरी
महाराष्ट्र के नासिक नगर पर माता की ठोड़ी गिरी थी। निकटतम रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा नासिक स्थित है।
40. रत्नावली- कुमारी
बंगाल के हुगली जिले के खानाकुल-कृष्णानगर मार्ग पर माता का दायां कंधा गिरा था। रेल सड़क परिवहन देश के इस हिस्से में आने का सबसे सामान्य साधन है। यद्यपि इस भाग के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं है, इसलिए तीर्थयात्रियों को यहां तक पहुंचने के लिए ट्रेन बदलने की जरूरत है। हावड़ा एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है जो खानकुल से लगभग 81 किलोमीटर की दूरी पर है। निकटतम हवाई अड्डा कोलकाता (पश्चिम बंगाल की राजधानी) में है, और इस हवाई अड्डे पर दोनों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का प्रावधान है।
41. मिथिला- उमा (महादेवी)
भारत-नेपाल की सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में माता का बायाँ कंधा गिरा था। निकटतम हवाई अड्डा पटना मैं है। निकटतम रेलवे स्टेशन जनकपुर स्टेशन है। मिथिला - उमा देवी शक्ति पिठ मंदिर तक पहुंचने के लिए कई सार्वजनिक और निजी वाहनों का प्रयोग किया जा सकता है।
42. नलहाटी- कालिका
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में माता के स्वर रज्जु गिरी थी। निकटतम बस स्टैंड नालहाटी बस स्टैंड है और
निकटतम रेलवे स्टेशन नालहटी जंक्शन है। निकटतम हवाई अड्डा डमडुम, कोलकाता में स्थित है।
43. देवघर- बैद्यनाथ
झारखंड के बैद्यनाथ में जयदुर्गा मंदिर एक ऐसी जगह है जहां माता माता सती का हृदय गिरा था। मंदिर को स्थानीय रूप से बाबा मंदिर / बाबा धाम कहा जाता है। परिसर के भीतर, जयदुर्गा शक्तिपीठ वैद्यनाथ के मुख्य मंदिर के ठीक सामने मौजूद हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन हावड़ा-पटना-दिल्ली लाइन से जसीडिह (10 किमी) है। निकटतम हवाईअड्डा - रांची, गया, पटना और कोलकाता मैं हैं।
44. कर्णाट जयादुर्गा
कर्णाट शक्ति पीठ कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश में स्थित है, माता माता सती के दोनों कान गिरे थे। यहां देवी को जयदुर्गा या जयदुर्ग और भगवान शिव को अबिरू के रूप में पूजा की जाती है। निकटतम हवाई अड्डा गगगल हवाई अड्डा है हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थित है, जहां से कांगड़ा केवल 18 किलोमीटर है।
45. यशोर- यशोरेश्वरी
बांग्लादेश के खुलना जिला के ईश्वरीपुर के यशोर स्थान पर माता के हाथ की हथेली गिरी थी। यह ईश्वरपुर, श्यामनगर उपनगर, सातखिरा जिला, बांग्लादेश में स्थित है। निकटतम हवाई अड्डा बांग्लादेश की राजधानी ढाका में स्थित है, और इस हवाई अड्डे पर दोनों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का प्रावधान है। दोनों देशों के बीच कोई रेल मार्ग नहीं है, ऐसे में कुछ बसें हैं जो भारत के प्रमुख शहरों से इस पवित्र स्थल तक जाती है।
46. अट्टाहास- फुल्लरा
पश्चिम बंगला के अट्टाहास स्थान पर माता के निचला ओष्ठ गिरा था। यह कोलकाता से 115 किमी दूर है।अहमपुर अहमपुरपुर कटवा रेलवे से लगभग 12 किमी दूर है। नेताजी सुभाष चंद्र हवाई अड्डे निकटतम हवाई अड्डे है, जो कि लाहपुर से लगभग 1 9 6 किलोमीटर दूर है।
47. नंदीपूर- नंदिनी
पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले मी माता का गले का हार गिरा था। बीरभूम में विभिन्न स्थानों से शुरू होने वाली कई सीधी बसें हैं। यह शक्ति पीठ स्थानीय रेलवे स्टेशन स केवल10 मिनट की दूरी पर है। निकटतम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा कोलकाता में नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे है।
48. लंका- इंद्राक्षी
श्रीलंका में संभवत: त्रिंकोमाली में माता की पायल गिरी थी। यह पीठ, नैनातिवि (मणिप्लालम) में है, श्रीलंका के जाफना से 35 किलोमीटर, नल्लूर में है। रावण (श्रीलंका के शासक या राजा) और भगवान राम मैं भी यहां पूजा की थी।
49. विराट- अंबिका
यह शक्ति पीठ राजस्थान मैं भरतपुर के विराट नगर में स्थित है जहां माता के बाएं पैर कि उंगलियां गिरी थी। निकटतम हवाई अड्डा जयपुर है और राष्ट्रीय उड़ानों के साथ-साथ यहां से अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भी उपलब्ध हैं।भरतपुर रेलवे स्टेशन पर कई सीधी ट्रेन उपलब्ध हैं। भरतपुर रेलवे स्टेशन से अंबिका शक्तिपीठ तक पहुंचने के लिए स्थानीय ट्रेन से जाना पड़ता है।
50. सर्वानन्दकरी
बिहार के पटना में माता माता सती कि यहां दाएं जांघ गिरी थी। इस शक्तीपीठ को सर्वानंदकरी के नाम से जाना जात है।निकटतम हवाई अड्डा जय प्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो 8 किलोमीटर दूर स्थित है।
51. चट्टल
यह मंदिर मा माता सती के 51 शक्ति पिठों में सूचीबद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि, माँ माता सती का दाहिना हाथ यहाँ गिरा था। चट्टल शक्ति पीठ, चटगांव जिला, बांग्लादेश के सताकुंडा स्टेशन में स्थित है।
बांग्लादेश में सड़क परिवहन सबसे आम साधन है यद्यपि इस भाग के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं है, इसलिए तीर्थयात्रियों को चटगांव से यहां तक पहुंचने के लिए ट्रेन बदलने की जरूरत है। निकटतम हवाई अड्डा शाह अमानत अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। इस शक्ति पीठ को देखने के लिए भारतीय तीर्थ यात्रियों को वीजा के लिए आवेदन करना होगा।
52. सुगंध
सुगंध शक्तिपीठ देवी सुनंदा को समर्पित एक मंदिर है। यह बांग्लादेश से, 10 किलोमीटर उत्तर बुलिसल के शिखरपुर गांव में स्थित है। यह कहा जाता है कि माँ माता सती की नाक यहाँ गिरी थी। बरिएसल सिटी में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। झालकाटी रेलवे स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है।

जय माता दी

Jai Mata Di
JAI MATA DI Jai Mata Di जय माता दी Rajesh Mishra, Kolkata


ज़ोर से बोलो जय माता दी
सारे बोलो जय माता दी
हम भई बोले जय माता दी
तुम भी बोलो जय माता दी
मिलके बोलो जय माता दी
साज़ के बोलो जय माता दी
माँ वैष्णो देवी जय माता दी
माँ दुध पूर्ण जय माता दी
माँ नैना देवी जय माता दी
माँ ज्वाला देवी जय माता दी
चामुंडा देवी जय माता दी
माँ कंगरे वाली जय माता दी
माँ मनसा देवी जय माता दी
माँ कालिका देवी जय माता दी
माँ झंडे वाली जय माता दी
माँ शिर देखा हरि जय दी
लगति पिय जाइ माता दी
है सबसे नारी जय माता दी
मेरी माँ है भोली जय माता दी

भरति है झोली जय माता दी
माँ पिंडी छेद जय माता दी
माँ संकटा हरनी जय माता दी
माँ तरन हरि जय माता दी
माँ कल कलोली जय माता दी
माँ सरदा रानी जय माता दी
माँ भाव विधाता जय माता दी
अवाज न आयै जय माता दी
सुनिया जय माता दी पर मुख्य
अगले बोलो जय माता दी
पिछले बोलो जय माता दी
माँ आप बुलै जय माता दी
माँ भारे भंडारे जय माता दी
माँ काज सियारे जय माता दी
मा कशट भगेय जय माता दी
जय माता दी जय माता दी बोलो
जय माता दी जय माता दी बोलो
जय माता दी जय माता दी जय माता दी
जय माता दी जय माता दी जय माता दी
मिश्रा परिवार की और से राजेश मिश्रा का 
सुन लो करुण पुकार -
सच्चियाय ज्योतां वाली माता तेरी सदा ही जय हो 

दीपावली पर लक्ष्मीजी, गणेश और कुबेर की संपूर्ण पूजन विधि !!

deepaavalee par lakshmeejee, ganesh aur kuber kee sampoorn poojan vidhi va shubh muhoort !!


भगवती महालक्ष्मी चल एवं अचल संपत्ति देने वाली हैं। दीपावली की रात लक्ष्मीजी के विधिवत पूजन से हमारे सभी दुख और कष्ट दूर होते हैं। लक्ष्मी पूजन की संक्षिप्त विधि निम्न प्रकार से है:

लक्ष्मी पूजन की सामग्री:-
महालक्ष्मी पूजन में केशर, रोली, चावल, पान, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बताशे, सिंदूर, सूखे, मेवे, मिठाई, दही, गंगाजल, धूप, अगरबत्ती, दीपक, रूई तथा कलावा नारियल और तांबे का कलश चाहिए। इसमें मां लक्ष्मी को कुछ वस्तुएं बेहद प्रिय हैं। उनका उपयोग करने से वह शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इसलिए इनका उपयोग जरूर करें।

वस्त्र : लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है।

पुष्प : कमल व गुलाब

फल : श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े

सुगंध : केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र

अनाज : चावल तथा मिठाई में घर में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य, प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली का तेल

पूजा की तैयारी:

Rajesh Mishra, Kolkata (Bheldi Nivasi)


एक चौकी पर माता लक्ष्मी और भगवान श्रीगणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि लक्ष्मी जी की दाईं दिशा में श्रीगणेश रहें और उनका मुख पूर्व दिशा की ओर रहे। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है। दो बड़े दीपकों में से एक में घी व दूसरे में तेल डालें। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। एक छोटा दीपक गणेशजी के पास रखें।मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से इस पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं। इसके बीच सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें।

3 थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें :-
1. ग्यारह दीपक

2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान

3. फूल, दुर्वा, धनिया, कमलगट्टा,चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।

इन थालियों के सामने यजमान बैठें। परिवार के सदस्य उनके बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।

पूजा की विधि:-

पवित्रिकरण:-
सबसे पहले पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके खुद का तथा पूजन सामग्री का जल छिड़ककर पवित्रिकरण करें और साथ में मंत्र पढ़ें।

ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥

आचमन:-
ऊं केशवाय नम:, ऊं माधवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:, फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें-
ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
ऊँ महालक्ष्म्यै नम: मंत्र जप के साथ महालक्ष्मी के समक्ष आचमनी से जल अर्पित करें। शुद्धि और आचमन के बाद चंदन लगाना चाहिए। अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें
चन्‍दनस्‍य महत्‍पुण्‍यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्‍यम् लक्ष्‍मी तिष्‍ठतु सर्वदा।

संकल्प:-
संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प करें कि हे महालक्ष्मी मैं आपका पूजन कर रहा हूं।

गणपति पूजन:-
किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है। इसलिए आपको भी सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा करनी चाहिए। हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें-
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
आवाहन: ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।।
तना कहकर पात्र में अक्षत छोड़ें। पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें।

नवग्रहों का पूजन:-
हाथ में थोड़ा सा जल ले लीजिए और आह्वान व पूजन मंत्र बोलिए और पूजा सामग्री चढ़ाइए। फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में चावल और फूल लेकर नवग्रह का ध्यान करें :-

ओम् ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशि भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: सर्वे ग्रहा: शान्तिकरा भवन्तु।।
नवग्रह देवताभ्यो नम: आहवयामी स्थापयामि नम:।

षोडशमातृका पूजन:-
इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है। हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प ले लीजिए। सोलह माताओं को नमस्कार कर लीजिए और पूजा सामग्री चढ़ा दीजिए। सोलह माताओं की पूजा के बाद मौली लेकर भगवान गणपति पर चढ़ाइए और फिर अपने हाथ में बंधवा लीजिए और तिलक लगा लीजिए। अब महालक्ष्मी की पूजा प्रारंभ कीजिए। गणेशजी, लक्ष्मीजी व अन्य देवी-देवताओं का विधिवत षोडशोपचार पूजन, श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त व पुरुष सूक्त का पाठ करें और आरती उतारें। पूजा के उपरांत मिठाइयां, पकवान, खीर आदि का भोग लगाकर सबको प्रसाद बांटें।

कलश पूजन:-
ऊं कलशस्य मुखे विष्णु: कंठे रुद्र: समाश्रित: मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता:। इसके बाद तिजोरी या रुपए रखने के स्थान पर स्वास्तिक बनाएं और श्लोक पढ़ें- मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ध्वज: मंगलम् पुंडरीकाक्ष: मंगलायतनो हरि:।

लक्ष्मी पूजन:-
ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।
इसके बाद लक्ष्मी देवी की प्रतिष्ठा करें। हाथ में अक्षत लेकर बोलें
“ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ,
एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”
प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं: ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।।
ॐ लक्ष्म्यै नमः।।
इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं।
इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं।
‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः।
पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।।

ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’ 
इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं। अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं। पूजन के बाद लक्ष्मी जी की आरती करना न भूलें। आरती के बाद प्रसाद का भोग लगाएं। इसी वक्त दीप का पूजन करें।

कुबेर पूजन:=

कुबेर पूजन में सब से पहले कुबेर की मूर्ति लक्ष्मीजी गणेश के साथ रखेफिर तिजोरी अथवा रुपए रखे जाने वाले संदूक के ऊपर स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और फिर भगवान कुबेर का आह्वान करें-
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
कोशं वद्र्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।
आह्वान के बाद ऊं कुबेराय नम: इस नाम मंत्र से गंध, फूल आदि से पूजन कर अंत में इस प्रकार प्रार्थना करें-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भगवान् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:।।
इस प्रकार प्रार्थना कर हल्दी, धनिया, कमलगट्टा,रुपए, दूर्वादि से युक्त थैली तिजोरी मे रखें।
 

दीपक पूजन:
दीपक ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है। हृदय में भरे हुए अज्ञान और संसार में फैले हुए अंधकार का शमन करने वाला दीपक देवताओं की ज्योर्तिमय शक्ति का प्रतिनिधि है। इसे भगवान का तेजस्वी रूप मान कर पूजा जाना चाहिए। भावना करें कि सबके अंत:करण में सद्ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न हो रहा है। बीच में एक बड़ा घृत दीपक और उसके चारों ओर ग्यारह, इक्कीस, अथवा इससे भी अधिक दीपक, अपनी पारिवारिक परंपरा के अनुसार तिल के तेल से प्रज्ज्वलित करके एक परात में रख कर आगे लिखे मंत्र से ध्यान करें। दीप पूजन करने के बाद पहले मंदिर में दीपदान करें और फिर घर में दीए सजाएं। दीवाली की रात लक्ष्मी जी के सामने घी का दीया पूरी रात जलना चाहिए।

मां वैभव लक्ष्मी की आरती:-
Rajesh Mishra, Kolakta, (Bheldi) dwara Mata Rani ka aarti


ऊँ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता.
तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता.
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता

दुर्गा रुप निरंजनि, सुख-सम्पत्ति दाता.
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्घि-सिद्घि धन पाता॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता

तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभदाता.
कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता

जिस घर में तुम रहती, सब सद्गुण आता.
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता

तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्त्र न कोई पाता.
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता

शुभ-गुण मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता.
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता

श्री महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई नर गाता.
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ॥ ऊँ जय लक्ष्मी माता

ये 14 प्रकार की बुरी आदतें जीवित को भी बना देती हैं मृत समान !!

अच्छे और सुखी जीवन के लिए जरूरी है कि कुछ नियमों का पालन किया जाए। शास्त्रों के अनुसार बताए गए नियमों का पालन करने वाले व्यक्ति को जीवन में कभी भी किसी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है। स्त्री हो या पुरुष, कुछ बातों का ध्यान दोनों को ही समान रूप से रखना चाहिए। अन्यथा भविष्य में भयंकर परिणामों का सामना करना पड़ता है। मृत्यु एक अटल सत्य है। देह एक दिन खत्म हो जानी है, यह पूर्व निश्चित है। आमतौर पर यही माना जाता है कि जब देह निष्क्रिय होती है, तब ही इंसान की मृत्यु होती है, लेकिन कोई भी इंसान देह के निष्क्रिय हो जाने मात्र से नहीं मरता। कई बार जीवित रहते हुए भी व्यक्ति मृतक हो जाता है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस के लंकाकांड में एक प्रसंग आता है, जब लंका दरबार में रावण और अंगद के बीच संवाद होता है। इस संवाद में अंगद ने रावण को बताया है कि कौन-कौन से 14 दुर्गण या बातें आने पर व्यक्ति जीते जी मृतक समान हो जाते हैं।आज भी यदि किसी व्यक्ति में इन 14 दुर्गुणों में से एक दुर्गुण भी आ जाता है तो वह मृतक समान हो जाता है। यहां जानिए कौन-कौन सी बुरी आदतें, काम और बातें व्यक्ति को जीते जी मृत समान बना देती हैं।

1. कामवश- जो व्यक्ति अत्यंत भोगी हो, कामवासना में लिप्त रहता हो, जो संसार के भोगों में उलझा हुआ हो, वह मृत समान है। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती और जो प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही जीता है, वह मृत समान है।
2. वाम मार्गी- जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले। जो संसार की हर बात के पीछे नकारात्मकता खोजता हो। नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार के खिलाफ चलता हो, वह वाम मार्गी कहलाता है। ऐसे काम करने वाले लोग मृत समान माने गए हैं।
3. कंजूस- अति कंजूस व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जो व्यक्ति धर्म के कार्य करने में, आर्थिक रूप से किसी कल्याण कार्य में हिस्सा लेने में हिचकता हो। दान करने से बचता हो। ऐसा आदमी भी मृत समान ही है।
4. अति दरिद्र- गरीबी सबसे बड़ा श्राप है। जो व्यक्ति धन, आत्म-विश्वास, सम्मान और साहस से हीन हो, वो भी मृत ही है। अत्यंत दरिद्र भी मरा हुआ हैं। दरिद्र व्यक्ति को दुत्कारना नहीं चाहिए, क्योकि वह पहले ही मरा हुआ होता है। बल्कि गरीब लोगों की मदद नहीं चाहिए।
5. विमूढ़- अत्यंत मूढ़ यानी मूर्ख व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसके पास विवेक, बुद्धि नहीं हो। जो खुद निर्णय ना ले सके। हर काम को समझने या निर्णय को लेने में किसी अन्य पर आश्रित हो, ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुए मृत के समान ही है।
6. अजसि- जिस व्यक्ति को संसार में बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ है। जो घर, परिवार, कुटुंब, समाज, नगर या राष्ट्र, किसी भी ईकाई में सम्मान नहीं पाता है, वह व्यक्ति मृत समान ही होता है।
7. सदा रोगवश- जो व्यक्ति निरंतर रोगी रहता है, वह भी मरा हुआ है। स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है। नकारात्मकता हावी हो जाती है। व्यक्ति मुक्ति की कामना में लग जाता है। जीवित होते हुए भी रोगी व्यक्ति स्वस्थ्य जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है।

8. अति बूढ़ा- अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। शरीर और बुद्धि, दोनों असक्षम हो जाते हैं। ऐसे में कई बार स्वयं वह और उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं, ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।
9. संतत क्रोधी- 24 घंटे क्रोध में रहने वाला भी मृत समान ही है। हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करना ऐसे लोगों का काम होता है। क्रोध के कारण मन और बुद्धि, दोनों ही उसके नियंत्रण से बाहर होते हैं। जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण न हो, वह जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता है।
10. अघ खानी- जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना और परिवार का पालन-पोषण करता है, वह व्यक्ति भी मृत समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। हमेशा मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही जाती है।
11. तनु पोषक- ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह से आत्म संतुष्टि और खुद के स्वार्थों के लिए ही जीता है, संसार के किसी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना ना हो तो ऐसा व्यक्ति भी मृत समान है। जो लोग खाने-पीने में, वाहनों में स्थान के लिए, हर बात में सिर्फ यही सोचते हैं कि सारी चीजें पहले हमें ही मिल जाएं, बाकि किसी अन्य को मिले ना मिले, वे मृत समान होते हैं। ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते हैं।
12. निंदक- अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसे दूसरों में सिर्फ कमियां ही नजर आती हैं। जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता। ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे तो सिर्फ किसी ना किसी की बुराई ही करे, वह इंसान मृत समान होता है।
13. विष्णु विमुख- जो व्यक्ति परमात्मा का विरोधी है, वह भी मृत समान है। जो व्यक्ति ये सोच लेता है कि कोई परमतत्व है ही नहीं। हम जो करते हैं, वही होता है। संसार हम ही चला रहे हैं। जो परमशक्ति में आस्था नहीं रखता है, ऐसा व्यक्ति भी मृत माना जाता है।
14. संत और वेद विरोधी- जो संत, ग्रंथ, पुराण और वेदों का विरोधी है, वह भी मृत समान होता है।

मोक्ष का सागर : गंगासागर

Rajesh Mishra, Kolkata, Gangasagar कई बार दौरा करने एवं वहां के लोगों से बातचीत के बाद राजेश मिश्रा को जो दिखा और पता चला उसी आधार पर मैं यह...