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गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

श्रवणबेलगोलाः भगवान का महामस्तकाभिषेक

भगवान बाहुबली महामस्तकाभिषेक महामहोत्सव

विश्व प्रसिद्ध भगवान बाहुबली महामस्तकाभिषेक दिनांक 17 से 25 फरवरी 2018 तक आयोजित होने वाले महामहोत्सव में अपने परिवार व इष्ट मित्रों सहित शामिल होकर धर्म लाभ लें - राजेश मिश्रा, कोलकाता 
ऐसे मौके बार-बार नहीं आते। 12 साल गुजरने के बाद आप महामस्तकाभिषेक के साक्षी बनते हैं। वर्ष 2018 का फरवरी महीना इसी का गवाह बना है। कर्नाटक राज्य का हासन जिला और उसका एक छोटा सा गांव श्रवणबेलगोला 17 फरवरी से लाखों जैन भक्तों की मेजबानी करेगा। वहीं महामस्तकाभिषेक के दौरान लोगों के रहने के लिए 12 नगरों और 17 महाभोजनालय का काम लगभग पूरा हो चुका है। 

जर्मन तकनीक पर आधारित मंच से लाखों लोग महामस्तकाभिषेक करेंगे। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 7 फरवरी को इस कार्यक्रम की शुरुआत की। इसी के साथ पंचकल्याणक महोत्सव भी शुरू हो गया। महामस्तकाभिषेक में मुंबई से बड़ी संख्या में भक्त पहुंचेंगे। 17 फरवरी 2018 को दिन के 2 बजे से महामस्तकाभिषेक का शुभारंभ होगा और यह 26 फरवरी तक चलेगा। हालांकि उत्सव का आयोजन 7 फरवरी से शुरू हो चुका है। 

इस महाआयोजन में भाग लेने आए जैन गुरु आचार्य वर्धमान सागरजी कहते हैं, 'भगवान बाहुबली का संदेश आज के अशांत युग में शांति का पैगाम देते हैं। ऐसे में इस आयोजन के द्वारा उनकी कहीं बातें लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंचेंगी। ऐसा नहीं है कि भगवान बाहुबली की कही बातें केवल जैन धर्मावलंबी के लिए ही उपयोगी हैं, सच तो यह है कि अगर उनके बताए रास्ते पर लोग चलें तो हर तरफ शांति ही शांति होगी।' 

कौन हैं भगवान बाहुबली 

जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव के सौ पुत्रों में दो पुत्र थे: भरत और बाहुबली। अपने बड़े भाई भरत को पराजित कर राजसत्ता का उपभोग बाहुबली कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और सारा राजपाठ छोड़कर वे तपस्या करने लगे। भगवान बाहुबली ने इंसान के आध्यात्मिक उत्थान और मानसिक शांति के लिए चार बातें बताई थीं: अहिंसा से सुख, त्याग से शांति, मैत्री से प्रगति और ध्यान से सिद्धि की प्राप्ती होती है। 

बाहुबली की प्रतिमा है खास 

भगवान बाहुबली की बड़ी प्रतिमा वह भी पहाड़ को काटकर कहीं दूसरी जगह नहीं मिलेगी। इसका निर्माण कार्य 981 ई. में पूरा हुआ था। उस समय कर्नाटक में गंग वंश का शासन था। सेनापति चामुंडराय ने निर्माण कराया था। 

जैन धर्मावलंबियों के लिए है काशी 

श्रवणबेलगोला का जैन धर्मावालंबियों में वही महत्व है जो हिन्दू धर्म को मानने वालों के लिए काशी का है। 
यह तो हम सभी को पता है कि महामस्तकाभिषेक का आयोजन हर 12 साल पर होता है। इसलिए अगर आपकी इच्छा महामस्तकाभिषेक के आयोजन में शामिल होने की है तो आप जरूर श्रवणबेलगोला पहुंचे। 

एक नजर में इस महाआयोजन से जुड़ी अहम जानकारियांः 

  • 7 फरवरी को देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने श्रवणबेलगोला में महामस्तकाभिषेक महोत्सव का उद्घाटन किया। इसी के साथ पंचकल्याणक महोत्सव भी शुरू हो चुका है। 
  • 500 करोड़ रुपये खर्च होंगे इस भव्य महाआयोजन पर 
  • 10 करोड़ रुपये से भी ज्यादा खर्च हुए महामस्तकाभिषेक के लिए जर्मन तकनीक से मंच तैयार करने में 
  • 5 करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं मुआवजे के रूप में किसानों को 
  • 400 एकड़ जमीन पर तैयारी की गई है महामस्तकाभिषेक आयोजन की 
  • 12 नगर बसाए गए लोगों, भक्तों और साधकों के लिए 
  • 20 हजार से ज्यादा लोगों के लिए हर दिन ठहरने का प्रबंध कर रही है श्रवणबेलगोला कमिटी 
  • 50 लाख से भी ज्यादा लोग इस महामस्तकाभिषेक में लेंगे हिस्सा 
  • 7000 से भी ज्यादा पुलिस कर्मियों की तैनाती महाआयोजन के दौरान सुरक्षा व्यवस्था के लिए करेगी राज्य सरकार

सौभाग्य आपको बुला रहा हैअहम तारीखें 

  • 7 फरवरी उत्सव की हुई शुरुआत 
  • 7-16 फरवरी पंचकल्याणक महोत्सव का आयोजन 
  • 17 फरवरी महामस्तकाभिषेक की शुरुआत 
  • 26 फरवरी समापन समारोह का कार्यक्रम 
  • 31 अगस्त या फिर मानसून की वजह से रास्ता बंद होने तक हर रविवार को किया जा सकेगा महामस्तकाभिषेक 

कहां पर है श्रवणबेलगोला 
कर्नाटक राज्य के हासन जिले में श्रवणबेलगोला स्थित है। बेंगलुरु शहर से लगभग 150 किमी दूर है। वहीं मैसूर से यह 80 किमी की दूरी पर है। 

कैसे पहुंचें 

  • विमान सेवा: मुंबई से बेंगलुरु के लिए लगभग डेढ़ घंटे की सीधी विमान की सेवा है। बेंगलुरु एयरपोर्ट उतरने के बाद वहां से टैक्सी, बस, ट्रेन सभी उपलब्ध हैं। एयरपोर्ट से 3 घंटे में आप श्रवणबेलगोला पहुंच जाएंगे। 
  • रेल मार्ग: मुंबई से कई ट्रेनें बेंगलुरु के लिए जाती हैं और बेंगलुरु से श्रवणबेलगोला के लिए भी ट्रेन की सुविधा उपलब्ध है। 
  • सड़क मार्ग: वैसे तो, मुंबई से श्रवणबेलगोला सड़क मार्ग से भी जा सकते हैं, लेकिन यह काफी लंबा सफर होगा। इस दौरान आप 974 किमी से भी ज्यादा दूरी तय करनी होगी। ऐसे में विमान और ट्रेन से बेंगलुरु पहुंचकर सड़क मार्ग एक विकल्प हो सकता है।

मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

महाशिवरात्रि और शिवतेरस

महाशिवरात्रि  – कल्याणमय शिव के पूजन की रात्रि 

कथा , पूजन विधि और कैसे रखें उपवास

उत्तर भारतीय पंचांग के अनुसार महाशिवरात्रि या “शिव की महान रात” का पर्व फाल्गुन माह में मनाया जाता है। लेकिन दक्षिण भारतीय पंचांग के अनुसार, यह त्योहार माघ के महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। हालांकि हर चंद्र महीने के चौदहवें दिन या अमावस्या के एक दिन पहले के दिन को शिवरात्रि के रूप में जाना जाता है, लेकिन फरवरी के महीने में पड़ने वाला यह त्योहार महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। शिवरात्रि का त्योहार बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यह “अंधकार और अज्ञानता पर नियंत्रण पाने” वाले त्योहार के रूप में माना जाता है। भारत पर्व एवं उत्सवों का देश है। भारतीय जीवन में गांवों से लेकर शहरों तक व्रतों एवं उत्सवों का स्थायी प्रभाव है। महाशिवरात्रि का पर्व भी सम्पूर्ण भारत के साथ साथ नेपाल व मारिशस आदि देशों में उत्साह पूवर्क मनाया जाता है। महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता है। यह शिव भक्तों का उत्सव है। इसे ''शिवतेरस’’ भी कहते हैं।
महाशिवरात्रि : राजेश मिश्रा, कोलकाता
Rajesh Mishra, Kolkata

यह पर्व भगवान शिव, जो कि प्रथम आदिगुरु हैं तथा सत्य और परमानंद के जनक हैं, को समर्पित है। यह वही हैं जिनसे ज्ञान की उत्पत्ति हुई। कुछ किंवदंतियों के अनुसार, भगवान शिव को ब्रह्मांड के रचयिता और विध्वंसक के रूप में भी जाना जाता है।

कैसे रखें शिवरात्रि के दिन उपवास?

महाशिवरात्रि व्रत या शिवरात्रि व्रतम् भक्तों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है। पूरे दिन भोजन को त्यागकर रात में भगवान शिव की उपासना करने के बाद भक्त भोजन ग्रहण करते हैं। भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हिंदू लोग इस उपवास को बड़ी निष्ठा और दृढ़ संकल्प से रखते हैं। बेल पत्र (बेल के पत्ते), धतूरा, पान और सुपारी आदि चीजें भगवान को समर्पित की जाती हैं, क्योंकि ये चीजें भगवान शिव की पसंदीदा मानी जाती हैं। शिव लिंग का अभिषेक जल और दूध से कराया जाता है।

बाबा वैद्यनाथ की शरण में राजेश मिश्रा
Rajesh Mishra  in  Baba Baidyanath Temple, Devghar, 


उस दिन के सभी चार प्रहरों में भगवान की उपासना की जाती है, लेकिन आमतौर पर शिवरात्रि की मुख्य उपासना रात्रि में ही की जाती है, क्योंकि शिवरात्रि रात में ही मनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस रात को पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की स्थिति एक विशेष प्रकार से होने के कारण इंसानों में ऊर्जा का प्राकृतिक विस्तार होता है। ऊर्जा के इस प्राकृतिक उदय को अपने शरीर में प्राप्त करने के लिए ध्यान की मुद्रा में बैठना चाहिए।

आप पूरे दिन उपवास रख सकते हैं और सूर्यास्त के बाद भोजन कर सकते हैं या अपनी पसंद के अनुसार फल और दूध का उपभोग कर सकते हैं ।
हमारे देश में छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुषों द्वारा शिव रात्रि के दिन व्रत रखा जाता है, ताकि इस लोक में उनकी मनोकामनायें पूर्ण हों तथा शीघ्र ही शिवधाम को पहुंचें। इस व्रत में प्रात:काल स्नानादि के बाद पूरे दिन व्रत रखा जाता है तथा गंगाजल और दुग्धाहार ही गृहण करते हैं। मन्दिरों में जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं तथा रात्रि भर जागरण करते हैं। व्रत वाले दिन रुद्राष्ठाध्यायी, शिवपुराण, शिवमहिम्भरस्रोत्र, रुद्राभिषेक आदि का पाठ करना चाहिये।

महाशिवरात्रि के बारे में कथाएं

महाशिवरात्रि के त्यौहार से संबधित कई किंवदंतियां हैं। इनमें से एक उत्तर भारत में सबसे प्रमुख शिव और पार्वती का विवाह है। यह माना जाता है कि भगवान शिव और पार्वती का विवाह इसी दिन हुआ था और उनके विवाह की रात्रि को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। मंदिरों को बहुत खूबसूरती से सजाया जाता है और भगवान को विभिन्न प्रकार की मिठाइयों और खाद्य पदार्थों के चढ़ावे चढ़ाए जाते हैं। अविवाहित लड़कियां भी व्रत रखती हैं और भगवान शिव से आशीर्वाद के रूप में उन्हीं के समान पति पाने के लिए प्रार्थना करती हैं।

एक और लोकप्रिय मान्यता के रूप में “नीलकंठ” की कथा भी महा शिवरात्रि से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच एक युद्ध हुआ। वे दोनों अमृत का सेवन करना चाहते थे, लेकिन विष को ग्रहण किए बिना, अमृत को प्राप्त नहीं किया जा सकता था। देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध के कारण हर जगह त्राहि-त्राहि मच गई। इसलिए ब्रह्मांड को विनाश से बचाने के लिए भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। भगवान शिव को उस विष के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए, पार्वती और अन्य देवता सारी रात जागते रहे और विष के हानिकारक प्रभावों से बचाने के लिए भगवान शिव को भी रात भर जगाते रहे। पूरी रात किसी ने कुछ भी नहीं खाया – पिया। भगवान शिव बच गए लेकिन उनका कंठ(गला) नीला हो गया। तभी से वह “नीलकंठ” के रूप में माने जाते है और इस रात्रि को ‘महाशिवरात्रि’ के रूप में मनाया जाता है। लोग भगवान शिव के बलिदान के प्रति पूरे दिन उपवास करते हुए प्रेम और भक्ति के साथ स्वादिष्ट व्यंजनों को चढ़ाकर इस रात्रि के अवसर का जश्न मनाते हैं।

किंवदंतियों के अनुसार, भगवान शिव सबसे शक्तिशाली देवता हैं। भगवान शिव में सच्चाई, शांति, भोलेपन और सौंदर्य आदि सभी गुण समाहित हैं। 

पुराणों में कहा जाता है कि एक समय पार्वती शिवजी के साथ कैलाश पर बैठी थीं। उसी समय पार्वती जी ने प्रश्न किया- ’’इस तरह का कोई व्रत है जिसके करने से मनुष्य आपके धाम को प्राप्त कर सके?’’ तब उन्होंने यह कथा सुनाई थी।

प्रत्यना नामक देश में एक व्याध रहता था जो जीवों को मारकर या जीवित बेचकर अपना भरण पोषण करता था। वह किसी सेठ का रुपया रखे हुए था। उचित तिथि पर कर्ज न उतार सकने के कारण सेठ ने उसको शिवमठ में बन्द कर दिया। संयोग से उस दिन फाल्गुन बदी त्रयोदशी थी। अत: वहां रातभर कथा, पूजा वार्ता होती रही। दूसरे दिन भी उसने कथा सुनी। चतुर्दशी को उसे इस शर्त पर छोड़ा गया कि दूसरे दिन वह कर्ज पूरा कर देगा। उसने सोचा रात को नदी के किनारे बैठना चाहिये। वहां जरूर कोई न कोई जानवर पानी पीने आयेगा। अत: उसने पास के बेल वृक्ष पर बैठने का स्थान बना लिया। उस बेल के नीचे शिवलिंग था। जब वह अपने छिपने का स्थान बना रहा था उस समय बेल के पत्तों को तोड़कर फेंकता जाता था जो शिवलिंग पर ही गिरते थे। वह दो दिन का भूखा था। इस तरह से वह अनजाने में ही शिवरात्रि का व्रत कर ही चुका था, साथ ही शिवलिंग पर बेल-पत्र भी अपने आप चढ़ते गये।
Mata Parvati or Bhole Baba ki Sharan men Rajesh Mishra

एक पहर रात्रि बीतने पर एक गर्भवती हिरणी पानी पीने आई। व्याध ने तीर को धनुष पर चढ़ाया किन्तु उसकी कातर वाणी सुनकर उसे इस शर्त पर जाने दिया कि प्रत्युष होने पर वह स्वयं आयेगी। दूसरे पहर में दूसरी हिरणी आई। उसे भी छोड़ दिया। तीसरे पहर भी एक हिरणी आई उसे भी उसने छोड़ दिया और सभी ने यही कहा कि प्रत्युष होने पर मैं आपके पास आऊंगी। चौथे पहर एक हिरण आया। उसने अपनी सारी कथा कह सुनाई कि वे तीनों हिरणियां मेरी स्त्री थीं। वे सभी मुझसे मिलने को छटपटा रही थीं। इस पर उसको भी छोड़ दिया तथा कुछ और भी बेल-पत्र नीचे गिराये। इससे उसका हृदय बिल्कुल पवित्र, निर्मल तथा कोमल हो गया। प्रात: होने पर वह बेल-पत्र से नीचे उतरा। नीचे उतरने से और भी बेल पत्र शिवलिंग पर चढ़ गये। अत: शिवजी ने प्रसन्न होकर उसके हृदय को इतना कोमल बना दिया कि अपने पुराने पापों को याद करके वह पछताने लगा और जानवरों का वध करने से उसे घृणा हो गई। सुबह वे सभी हिरणियां और हिरण आये। उनके सत्य वचन पालन करने को देखकर उसका हृदय दुग्ध सा धवल हो गया और अति कातर होकर फूट-फूट कर रोने लगा। यह सब देखकर शिव ने उन सबों को विमान से अपने लोक में बुला लिया ओर इस तरह से उन सबों को मोक्ष की प्राप्ति हो गई।

अत: जो लोग महाशिवरात्रि का व्रत निर्मल चित्त से करते हैं वे बहुत ही शीघ्र शिवधाम पहुंच जाते हैं और उन्हें मुक्ति प्राप्त हो जाती है। इस लोक में उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और परलोक में उन्हें शंकर भगवान के चरणों में स्थान प्राप्त हो जाता है।


महाशिवरात्रि जागरण, साधना, भजन करने की रात्रि है | 'शिव' का तात्पर्य है 'कल्याण' अर्थात यह रात्रि बड़ी कल्याणकारी है | इस रात्रि में किया जानेवाला जागरण, व्रत-उपवास, साधन-भजन, अर्थ सहित शांत जप-ध्यान अत्यंत फलदायी माना जाता है | 'स्कन्द पुराण' के ब्रह्मोत्तर खंड में आता है : 'शिवरात्रि का उपवास अत्यंत दुर्लभ है | उसमें भी जागरण करना तो मनुष्यों के लिए और दुर्लभ है | लोक में ब्रह्मा आदि देवता और वसिष्ठ आदि मुनि इस चतुर्दशी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं | इस दिन यदि किसी ने उपवास किया तो उसे सौ यज्ञों से अधिक पुण्य होता है |'

'जागरण' का मतलब है जागना | जागना अर्थात अनुकूलता-प्रतिकूलता में न बहना, बदलनेवाले शरीर-संसार में रहते हुए अब्दल आत्मशिव में जागना | मनुष्य-जन्म कही विषय-विकारों में बरबाद न हो जाय बल्कि अपने लक्ष्य परमात्म-तत्त्व को पाने में ही लगे - इस प्रकार की विवेक-बुद्धि से अगर आप जागते हो तो वह शिवरात्रि का 'जागरण' हो जाता है |

आज के दिन भगवान साम्ब-सदाशिव की पूजा, अर्चना और चिंतन करनेवाला व्यक्ति शिवतत्त्व में विश्रांति पाने का अधिकारी हो जाता है | जुड़े हुए तीन बिल्वपत्रों से भगवान शिव की पूजा की जाती है, जो संदेश देते हैं कि ' हे साधक ! हे मानव ! तू भी तीन गुणों से इस शरीर से जुड़ा है | यह तीनों गुणों का भाव 'शिव-अर्पण' कर दें, सात्विक, राजस, तमस प्रवृतियाँ और विचार अन्तर्यामी साम्ब-सदाशिव को अर्पण कर दे |'

बिल्वपत्र की सुवास तुम्हारे शरीर के वात व कफ के दोषों को दूर करती है | पूजा तो शिवजी की होती है और शरीर तुम्हारा तंदुरुस्त हो जाता है | भगवान को बिल्वपत्र चढ़ाते-चढ़ाते अपने तीन गुण अर्पण कर डालो, पंचामृत अर्पण करते-करते पंचमहाभूतों का भौतिक विलास जिस चैतन्य की सत्ता से हो रहा है उस चैतन्यस्वरूप शिव में अपने अहं को अर्पित कर डालो तो भगवान के साथ तुम्हारा एकत्व हो जायेगा | जो शिवतत्त्व है वही तुम्हारा आत्मा है और जो तुम्हारा आत्मा है वही शिवस्वरूप परमात्मा है |

शिवरात्रि के दिन पंचामृत से पूजा होती है, मानसिक पूजा होती है और शिवजी का ध्यान करके हृदय में शिवतत्त्व का प्रेम प्रकट करने से भी शिवपूजा मानी जाती है | ध्यान में आकृति का आग्रह रखना बालकपना है | आकाश से भी व्यापक निराकार शिवतत्त्व का ध्यान .......! 'ॐ....... नमः ........ शिवाय.......' - इस प्रकार प्लुत उच्चारण करते हुए ध्यानस्थ हो जायें |

शिवरात्रि पर्व तुम्हें यह संदेश देता है कि जैसे शिवजी हिमशिखर पर रहते हैं, माने समता की शीतलता पर विराजते हैं, ऐसे ही अपने जीवन को उन्नत करना हो तो साधना की ऊँचाई पर विराजमान होओ तथा सुख-दुःख के भोगी मत बनो | सुख के समय उसके भोगी मत बनो, उसे बाँटकर उसका उपयोग करो | दुःख के समय उसका भोग न करके उपयोग करो | रोग का दुःख आया है तो उपवास और संयम से दूर करो | मित्र से दुःख मिला है तो वह आसक्ति और ममता छुडाने के लिए मिला है | संसार से जो दुःख मिलता है वह संसार से आसक्ति छुडाने के लिए मिलता है, उसका उपयोग करो |

तुम शिवजी के पास मंदिर में जाते हो तो नंदी मिलता है - बैल | समाज में जो बुद्धू होते हैं उनको बोलते हैं तू तो बैल है, उनका अनादर होता है लेकिन शिवजी के मंदिर में जो बैल है उसका आदर होता है | बैल जैसा आदमी भी अगर निष्फल भाव से सेवा करता है, शिवतत्त्व की सेवा करता है, भगवतकार्य क्या है कि 'बहुजनहिताय, बहुजनसुखाय' जो कार्य है वह भगवतकार्य है | जो भगवन शिव की सेवा करता है, शिव की सेवा माने हृदय में छुपे हुए परमात्मा की सेवा के भाव से जो लोगों के काम करता है, वह चाहे समाज की नजर से बुद्धू भी हो तो भी देर-सवेर पूजा जायेगा | यह संकेत है नंदी की पूजा का |

शिवजी के गले में सर्प है | सर्प जैसे विषैले स्वभाववाले व्यक्तियों से भी काम लेकर उनको समाज का श्रृंगार, समाज का गहना बनाने की क्षमता, कला उन ज्ञानियों में होती है |

भगवन शिव भोलानाथ हैं अर्थात जो भोले-भाले हैं उनकी सदा रक्षा करनेवाले हैं | जो संसार-सागर से तैरना चाहते हैं पर कामना के बाण उनको सताते हैं, वे शिवजी का सुमिरण करते हैं तो शिवजी उनकी रक्षा करते हैं |

शिवजी ने दूज का चाँद धारण किया है | ज्ञानी महापुरुष किसी का छोटा-सा भी गुण होता है तो शिरोधार्य कर लेते हैं | शिवजी के मस्तक से गंगा बहती है | जो समता के ऊँचे शिखर पर पहुँच गये हैं, उनके मस्तक से ज्ञान की तरंगें बहती हैं इसलिए हमारे सनातन धर्म के देवों के मस्तक के पीछे आभामण्डल दिखाया जाता है |

शिवजी ने तीसरे नेत्र द्वारा काम को जलाकर यह संकेत किया कि 'हे मानव ! तुझमे भी तेरा शिवतत्त्व छुपा है, तू विवेक का तीसरा नेत्र खोल ताकि तेरी वासना और विकारों को तू भस्म कर सके, तेरे बंधनों को तू जला सके |'

भगवान शिव सदा योग में मस्त है इसलिए उनकी आभा ऐसे प्रभावशाली है कि उनके यहाँ एक-दूसरे से जन्मजात शत्रुता रखनेवाले प्राणी भी समता के सिंहासन पर पहुँच सकते हैं | बैल और सिंह की, चूहे और सर्प की एक ही मुलाकात काफी है लेकिन वहाँ उनको वैर नही है | क्योंकि शिवजी की निगाह में ऐसी समता है कि वहाँ एक-दूसरे के जन्मजात वैरी प्राणी भी वैरभाव भूल जाते हैं | तो तुम्हारे जीवन में भी तुम आत्मानुभव की यात्रा करो ताकि तुम्हारा वैरभाव गायब हो जाय | वैरभाव से खून खराब होता है | तो चित्त में ये लगनेवाली जो वृत्तियाँ हैं, उन वृत्तियों को शिवतत्त्व के चिंतन से ब्रह्माकार बनाकर अपने ब्रह्मस्वरूप का साक्षात्कार करने का संदेश देनेवाले पर्व का नाम है शिवरात्रि पर्व |

पूजा समाग्री से लेकर नैवेद्य तक सबका है अलग अर्थ और महत्‍व

ऐसा माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन सामूहिक तौर पर रुद्राभिषेक करना चाहिए ताकि हमारे सारे पाप कट सकें और जिंदगी में शांति और खुशियों का आगमन हो। देवाधिदेव शिव को अहं का नाशक माना जाता है और हमें अतीत में किए गए उन नकारात्मक कामों से मुक्ति मिलती है जो हमें हमारी असली शक्ति से दूर रखते हैं। महाशिवरात्रि के दिन हमें अपनी शक्तियों का बोध होता है। ऐसी मान्यता है कि इस रोज शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। शिव के उपासकों का विश्‍वास है कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव लिंगोदभव मूर्ति की शक्ल में देर रात प्रकट होते हैं। इस रात हर तीन घंटे पर पंडित मंत्रोच्चार और पारंपरिक पूजा करते हैं और शिवलिंग पर दूध, दही, शहद, घी, चीन और पानी का अभिषेक करते हैं। इस बीच ‘ॐ नम: शिवाय’ का जप और मंदिर की घंटियां लगातार बजाई जाती हैं।

विशिष्‍ट है शिव की पूजन सामग्री-

मान्यताओं के अनुसार, ये भी कहा जाता है कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया था, और लोगों ने उन्हें मनाने के लिए प्रार्थना की थी ताकि संसार का विनाश होने से रोका जा सके। शिव जब य​ह नृत्य करते हैं तो पूरा ब्रह्मांड विखंडित होने लगता है, इसीलिए इसको जलरात्रि भी कहते हैं। शिव पुराण के मुताबिक, महाशिवरात्रि पूजा के लिए जरूरी हैं कि इस शिवलिंग पर सिंदूर, बेल, फल और चावल, धूप, दीया, और पान पत्ता अवश्‍य प्रयोग किया जाए। सिंदूर को शिवलिंग पर इसलिए लगाया जाता है क्योंकि यह सदाचार की निशानी है। बेल से आत्मा शुद्ध होती है। फलाहार और चावल से भगवान शिव लंबी उम्र देने के साथ ही सभी इच्छाओं की पूर्ति का आशीर्वाद देते हैं। धूपबत्ती धनार्जन के लिए जलाई जाती हैं। माना जाता है कि दीया जलाने से ज्ञान की प्राप्ति होती है, जबकि पान पत्ता भौतिक सुखों की पूर्ति करता है।

महाशिवरात्रि हमारी आत्मा को जागृत करने वाला पर्व है। इस रोज हम सनातन योगी बन जाते हैं और अपनी आत्मा की सुनते हैं। महाशिवरात्रि पर शिवभक्त पूरे दिन और रात व्रत रखते हैं। वे अगली सुबह भगवान शिव को चढ़ाए गए प्रसाद को ग्रहण करते हुए अपना व्रत खोलते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव पावर्ती के बिना निर्गुण हैं। उनको सगुण बनने के लिए पार्वती की शक्तियों और साथ ही जरूरत रहती है।

शिवजी की आरती

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

मोक्ष का सागर : गंगासागर

Rajesh Mishra, Kolkata, Gangasagar कई बार दौरा करने एवं वहां के लोगों से बातचीत के बाद राजेश मिश्रा को जो दिखा और पता चला उसी आधार पर मैं यह...