भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर
संक्षिप्त परिचय : जीवनी - राजेश मिश्रा
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Sri Bhikhari Thakur |
अपने नाटकों और गीत-नृत्यों के माध्यम से भोजपुरी समाज की समस्याओं और कुरीतियों को सहज तरीके से नाच के मंच पर प्रस्तुत करने वाले भोजपुरी के ‘शेक्सपियर’ महान साहित्यकार भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी भाषा को लोकप्रिय बनाकर पूरी दुनिया में उसका प्रसार किया।
भले मेरा जन्म इस अनंत प्रतिभाशाली, गौरवमयी और भोजपुरी के शेक्सपियर श्री भिखारी ठाकुर जी के मरणोपरांत हुआ पर इनके प्रतिभा का प्रकाश मुझ पर भी गहरा पड़ा। जिससे मैं इन्हें कभी भूल नहीं सका। मैं राजेश मिश्रा ग्राम-भेल्दी, जिला-छपरा (सारण ), बिहार निवासी श्री ठाकुर के चरणों में बारम्बार नमन करता हूँ। भोजपुरी को विश्व में सम्मान दिलाने के लिए मैं श्री ठाकुर जी को बार बार श्रद्धासुमन अर्पण करता हूँ। कहीं कोई त्रुटि रह जाये इस लेख में तो हमरा के माफ़ कइल जाओ। इंसान से ही भूल होला। जितना खुद के पास जानकारी रहे यहां प्रस्तुत करतानी। इ आलेख में न्यूज़ सर्विस वार्ता से भी कुछ अंश लेल गइल बा।
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Rajesh Mishra, Kolkata |
बिहार के छपरा (सारण) जिले के एक छोटे से गांव कुतुबपुर दियारा में 18 दिसम्बर 1887 को एक नाई परिवार में जन्में भिखारी ठाकुर के पिता दलसिंगर ठाकुर और मां शिवकली देवी सहित पूरा परिवार अपने जातिगत पेशा जैसे कि उस्तरे से हजामत बनाना, चिट्ठी नेवतना, शादी-विवाह, जन्म-श्राद्ध और अन्य अनुष्ठानों तथा संस्कारों के कार्य किया करते थे। परिवार में दूर तक गीत, संगीत, नृत्य, नाटक का कोई माहौल नहीं था।
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Bhojpuri ke Shekspiyar Bhikhari Thakur |
भिखारी ठाकुर जब महज नौ वर्ष के थे तब उन्होंने पढ़ने के लिए स्कूल जाना शुरू किया। एक वर्ष तक स्कूल जाने के बाद भी उन्हें एक भी अक्षर का ज्ञान नहीं हुआ तब वह अपनी गाय को चराने का काम करने लगे। धीरे-धीरे अपने परिवार के जातिगत पेशे के अंतर्गत भिखारी हजामत बनाने का काम भी करने लगे। इस दौरान उन्हें दोबारा पढ़ने-लिखने की इच्छा हुई। गांव के ही एक लड़के भगवान साह ने भिखार को पढ़ाया। बाद में रोज़ी-रोटी की तलाश में वह खड़गपुर (बंगाल) चले गए। वहां से फिर मेदनीपुर (बंगाल) गए, जहां उन्होंने रामलीला देखी। कुछ समय बाद वह बंगाल से वापस अपने गांव आ गए और गीत-कविता सुनने लगे। सुन कर लोगों से उसका अर्थ पूछकर समझने लगे और धीरे-धीरे गीत-कविता, दोहा-छंद लिखना शुरू कर दिया।
भिखारी ठाकुर ने वर्ष 1917 में अपने कुछ मित्रों के साथ एक मंडली बनायी और रामलीला, भजन और कीर्तन करने लगे। हालांकि उनके अंदर अभी भी अपने गांव से दूर रह रहे उन मजदूरों के लिए दर्द भरा पड़ा था, जिसे वह अपने नाटकों में मंचन कर जीवंत करने लगे। उनके नाटकों में समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों की पीड़ा और दुर्दशा साफ तौर पर झलकती है। उन्होंने अपने नाटकों के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों पर गहरा प्रहार किया। भोजपुरी भाषा में बिदेसिया, गबरघिचोर, बेटी-बेचवा, भाई-बिरोध, पिया निसइल, गंगा-स्नान, नाई-बाहर, नकल भांड और नेटुआ सहित कई नाटक, सामाजिक-धार्मिक प्रसंग गाथा और गीतों की रचना की है।
भिखारी ठाकुर ने अपने नाटकों और गीत-नृत्यों के माध्यम से तत्कालीन भोजपुरी समाज की समस्याओं और कुरीतियों को सहज तरीके से नाच के मंच पर प्रस्तुत किया था। उनके नाच में किया जाने वाला बिदेसिया उनका सबसे प्रसिद्ध नाटक है। इस नाटक का मुख्य विषय विस्थापन है। इसमें रोजी-रोटी की तलाश में विस्थापन, घर में अकेली औरत का दर्द, शहर में पुरुष का पराई औरत के प्रति मोह को दिखाया गया है। जिस तरह पारसी थिएटर एवं नौटंकी मंडलियां देश के अनेक शहरों में जा-जा कर टिकट पर नाटक दिखाया करती थी उसी तरह नाच मंडलियां भी टिकट पर नाच करती थी। भिखारी ठाकुर ने असाम, बंगाल, नेपाल में खूब टिकट शो किए। राजघरानों सहित ज़मींदार भी उन्हें बुलाते थे।
अपने समय में भिखारी ठाकुर नाच विधा के स्टार कलाकार बन गए थे। अंग्रेज़ों ने ‘राय बहादुर’की उपाधि दी तो हिंदी के साहित्यकारों के बीच ‘भोजपुरी के शेक्सपियर’ और ‘अनगढ़ हीरा’ जैसे नाम से सम्मानित हुए। उनकी प्रसिद्धी इतनी बढ़ गई थी कि उनके नाच के सामने लोग सिनेमा देखना तक पसंद नहीं करते थे। उनकी एक झलक पाने के लिए लोग कोसों पैदल चल कर रात-रात भर नाच देखते थे।
कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता भिखारी ठाकुर की शख्सियत ने देश की सीमा तोड़ विदेशों में भी भोजपुरी को पहचान दिलाई। देश की सभी सीमाएं तोड़कर उन्होंने अपनी मंडली के साथ मॉरीशस, केन्या, सिंगापुर, नेपाल, ब्रिटिश गुयाना, सूरीनाम, युगांडा, म्यांमार, मैडागास्कर, दक्षिण अफ्रीका, फिजी, त्रिनिडाड और अन्य जगहों पर भी दौरा किया, जहां भोजपुरी संस्कृति है। वहीं, इनके नाटकों में होने वाला लौंडा नाच आज भी बिहार, उत्तर प्रदेश और बंगाल में देखने को मिलता है। भिखारी ठाकुर कई कामों में व्यस्त रहने के बावजूद भोजपुरी साहित्य की रचना में भी लगे रहे। उन्होंने तकरीबन 29 पुस्तकें लिखीं, जिस वजह से आगे चलकर वह भोजपुरी साहित्य और संस्कृति के संवाहक बने। भिखारी ठाकुर की किताबें वाराणसी, हावड़ा और छपरा से प्रकाशित हुई।
भिखारी ठाकुर की लोकप्रियता को सिनेमा जगत के लोगों ने भी खूब भुनाया। बिदेसिया नाटक की कहानी पर फ़िल्म बनाने का प्रस्ताव उन्हें मिला। वह बंबई (अब मुंबई) बुलाए गये। उनको मंच पर बैठा कर एक गाना भी शूट हुआ और 1963 में बिदेसिया नाम से बनी फिल्म रिलीज हुयी। फ़िल्म की शुरुआत में इस बात का खूब प्रचार किया गया कि भिखारी ठाकुर की बिदेसिया पहली बार बड़े परदे पर। साथ ही साथ यह भी प्रचार किया गया कि इस फ़िल्म में ख़ुद भिखारी ठाकुर मौजूद हैं।
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Rajesh Mishra, Kolkata |
भिखारी ठाकुर के नाम का प्रभाव बिहार, उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बंगाल, असाम सहित देश के अनेक हिस्सों में फैले भोजपुरियों के बीच खूब था। उनको देखने के लिए लोग सिनेमा हॉल में टूट पड़े। फ़िल्म खूब चली लेकिन जनता जिन्होंने पहले बिदेसिया नाटक देखा था उनको निराशा हुई ।
भोजपुरी क्षेत्र में नाच और भिखारी ठाकुर पर्यायवाची की तरह हैं। नाच के संदर्भ में भिखारी ठाकुर की ये पंक्तियां “नाच ह कांच, बात ह सांच, एह में लागे ना सांच” नाच विधा के कई पहलुओं को इंगित करती हैं। यहां पर कांच शब्द का तात्पर्य कच्चा, क्षणभंगुर है। भिखारी ठाकुर ने इन पंक्तियों के माध्यम से यह बताया है कि ‘नाच है तो कच्ची और क्षणभंगुर चीज़, पर यह सच्चाई की बात करता है जिसे किसी आंच यानी परीक्षा से डर नहीं है। भोजपुरी के समर्थ लोक कलाकार, रंगकर्मी जागरण के संदेश वाहक, लोकगीत और भजन-कीर्तन के अनन्य साधक इस अमर कलाकार का 10 जुलाई 1971 को निधन हो गया।
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Rajesh Mishra, Kolkata Birth Palace : Bheldi, Saran, Bihar |